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रंग
By Raj Modi
फाल्गुन मास का नाट्यमंचन था
आज सुरज रोज़ की तरह न होके
पीला रंग छोड़ अनेक रंग में उगा
हर आदमी अलग अलग किरदार
कोई मंद मंद ठंड, कोई मीठी सहर
कोई तो बुझी कल की राख भी थे
ज़रा सी चोट खाए एकम का चांद
एक बेढंग ठंडाई से भरी शाम
और मैं,
होली का रंग बना हु आज मैं,
अब तो बस ज़िद है मेरी
कि तेरे गालों पे सूख जाना है।
By Raj Modi