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"मां"

Updated: Sep 13

By Kanchan Bansal



"मां"

कैसे बांधू तुझे शब्दों में,

मेरी कलम में इतनी ताकत नहीं,

जो लिख पाए तुझे अर्थों में।


"मां"

कहां से लिखना शुरू करूं,

ये मेरी समझ से परे होने लगा है।

"मां"शब्द से ही तेरा मुस्कुराता चेहरा,

मुझे नजर आने लगा है।

जब से खुद मां बनी हूं

तब से हर पल ये मन

तुझे ही भगवान मानने लगा है-2


"मां"

तुम्हारा सुबह मुझे उठाना,

खुद भूखी रहकर मुझे खिलाना,

खुद गीले में सोकर,

मुझे सुखे में सुलाना,

रातों में यूं लोरियां सुनाना,

सब याद आने लगा है।

जब से खुद मां बनी हूं

तब से हर पल ये मन

तुम्हारी कुर्बानियां याद करने लगा है-2


"मां"

हमारी कामयाबी के लिए दुआएं करना,

हमें हर बुरी नजर से बचाना,

कभी टीचर,कभी दोस्त बनकर,

हमें अपना कर्तव्य समझाना,

पापा और भैया की डांट से बचाना,

अब सब समझ आने लगा है।

जब से खुद मां बनी हूं

तब से हर पल तुम्हारा ये त्याग

नजर आने लगा है-2



"मां"

परेशान पापा,हिम्मत तुम

चोट मुझे,उदास तुम

अब समझ आने लगा है।

"क्या हुआ मां" पूछने पर,

"कुछ नहीं"कहकर,

धीरे से आंखों के गीले कौर को पौंछना,

अब समझ आने लगा है।

जब से खुद मां बनी हूं

बस तभी से,हां बस तभी से

तुम्हारा यह प्यार नजर आने लगा है-2


"मां"

तुमसे बढ़कर कुछ नहीं,

पता नहीं क्यों,

आज ये सब लिखते हुए,

मेरी आंखों से सैलाब आने लगा है।

आज फिर तुम्हारी गोद में सर रखने को,

ये मन मचलने लगा है।

जब से खुद मां बनी हूं

तब से हर पल यह मन

तुम्हें ही भगवान मानने लगा है।।

तुम्हें ही भगवान मानने लगा है।।


By Kanchan Bansal



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