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मां

By Sheetal Keshtwal


मां चाहती है, मैं मां पर कविता बनाऊं

कविता मैं क्या बनाऊं, शब्द नहीं मिलते

मां तूझे कैसे समझाऊं

फिर भी सुन मां, तूझे तूझसे मिलाती हूं

चल मां, तूझे तेरा आईना दिखाती हूं

तू वो प्राण हवा है, जिसके बिना जीना मुश्किल हो

तू वो संजीवनी दवा है,जिसे देखते ही तख्लिफें दूर हो

मुझे मेरा पहला कदम तो याद नहीं





इतना पता है, तूने ही मुझे चलना सिखाया

गिर के संभलना, आगे बढना सिखाया

बताया जिदंगी की राहों में, आऐंगी मुसीबतें अनेक

जिंदगी की मुसीबतों से लड़ना सिखाया

तू बच्चे की मीठी मुस्कान है

तपती धूप में डाली की ठंडी छांव है

मैंने तूझे कितना सताया

जब तू दिन की थकी, रात को सोने लगी

वो मैं ही थी जो, अपनी निंद पूरी कर रोने लगी

फिर भी तू, एक मिठी मुस्कुराहट देकर

खेल खिलाने लगी ममता के आंचल में लेकर

नैनों में जो तेरे सपने थे

वो मेरे ही तो होते थे, फिर क्यों मैं नासमझ

पूरा न उन्हें होने देती थी

इतना पता है मुझको, अब भी जो मेरे सपने हैं

तेरे ही नैनों में पलते हैं

इतना वादा है तुझ से मेरा,अब ये सपने टूटे ना

खोई नींद ना लौटा पाऊंगी, पर तेरे सपने लौटाऊंगी

मैंने तोडे थे सपने तेरे, उन्हें मैं पूरा करके दिखाऊंगी।



By Sheetal Keshtwal




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