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माँ…
By Y. Deepika
केहती है तुमसे कि कोई भी बात मानता नहीं,
लेकिन केहती है दूसरों से कि मेरी बात टालता नहीं।
केहती है "मुझे काम है मैं कुछ सुनूंगी नहीं",
लेकिन जब कुछ पूछो, तुम्हारी कही बातों के बारे में, तो लगता है कि उनसे ज्यादा कोई जानता नहीं।
केहती है तुम्हारे काम करुँगी नहीं,
लेकिन तुम्हारे कहने से पहले सारे काम कर जाती है।
केहती है तुम जितना बेवक़ूफ़ देखा नहीं कही,
लेकिन किसी के सामने तुम्हारे इज़्ज़त पर आंच आने देगी नहीं।
वो शायद ही अनपढ़ हो,
लेकिन ज्यादा अंक आये ऐसे पढ़ाती है।
सारी दुनिया शायद ही तुम्हे बदसूरत माने,
लेकिन केहती है दुनिया में तुमसा खूबसूरत कोई नहीं।
केहती है तुम ज़्यादा बातें करते हो,
लेकिन तुम्हारी चुप्पी सही नहीं जाती।
केहती है मेरी नींद ख़राब मत करो,
लेकिन बात जब तुम्हारी तबियत कि हो तो,
खुद सारी रात जागकर तुम्हारी देखभाल करती है।
केहती है अकेले रेहना सीखो, बड़े हो कर अकेले रेहना है,
लेकिन जाने के बाद खुद आँखें आसुओं से भर लेती है।
केहती है ज़िन्दगी में हिम्मत से काम लो डरो मत,
लेकिन खुद तुम्हारी छोटी छोटी शरारतों पर डर जाती है।
सारी ज़िन्दगी खुश होने का नाटक कर सकती है,
लेकिन तुम खुश नहीं हो ये देख नहीं सकती।
पता नहीं उसने अपनी ख़ुशी के लिए कभी कुछ किया है कि नहीं,
लेकिन वो हर बार ख़ुशी से झूमी जब तुम्हे ख़ुशी मिली।
कुछ भी कहो,
शायद लगता है डर डाट से तेरी,
लेकिन सुकून और ख़ुशी कि नींद तो आती है गोदी में तेरी।
By Y. Deepika