माँ
- Hashtag Kalakar
- Oct 14
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By R.Devika
‘माँ’ - वो शब्द जिस पे कविताएँ लिखी गई हैं, अनेक
मैंने भी थोड़ी हिम्मत की, सोचा मैं भी लिखूँ एक,
लिखने बैठी तो जैसे यह कलम अचानक हुआ भारी
माँ' को शब्दों में नहीं बाँध पाई, कोशिश की सारी,
अरे, कविता तो उस पर लिखी जाती है, जिसकी तुलना हो पाए
जिसके जैसा कोई नहीं, उसको भगवान भी ना तोल पाए,
इसलिए इस रचना को मैं कविता नहीं कहूँगी।
हाँ, पर इसे श्रद्धांजली का नाम ज़रूर दूंगी।
उस हर एक माँ को समर्पित है मेरी यह सृष्टि,
जो एक घर को पूरा कर के भी, अर्धांगिनी है कहलाती।
कहते हैं, माँ से छोटा कोई शब्द नहीं
माँ से बड़ा भी कोई शब्द नहीं
माँ से गहरा कोई सागर नहीं
और माँ से ऊँचा कोई शिखर नहीं
यह सुनकर तो हर माँ का मन फूले नहीं समाता!
पर यह समाज, माँ से क्यों इतनी अपेक्षा रखता?
माँ कोई दिव्य देवी नहीं, है तो वो भी इनसान
अपने मुस्कान के पीछे गम को छुपाए, दफनाए उसने अपने अरमान,
बचपन में शायद उसने भी हासिल किये हो अंक उत्तम,
या खेल के मैदान में स्थान प्रथम
किसी की आवाज़ में शायद हो सुर-सरगम,
या किसी के नृत्य में हो साक्षात् शिवम!
कईयों ने शायद आगे चलकर भी बढ़ाए होंगे अपने कदम,
पर उन बाकियो का क्या जो रह गए थम?
माँ, कब तक तू चुकाती रहेगी यह ममता के ऋण?
अब अपने सपनों को उड़ान दे, अपने आप को चुन,
साकार कर वो सपने जो तूने बचपन में थे बुन
तुम नहीं किसी से कम, गूंज रही यह मधुर धुन,
मैं हमेशा साथ तेरे, तू बस अपने मन की सुन,
बस अपने मन की सुन…………
By R.Devika

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