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माँ
By Ashish Nagori
लग के सीने से, थोड़ी देर मुझे रोने दे माँ थक सा गया हूँ, थोड़ी देर मुझे सोने दे माँ थपथपा दे मुझे, थोड़ा सा करार आ जाये तेरी ममता की छाँव में मुझे खोने दे माँ चोट लगती मुझे, आँखों में नमी आती तेरे सो ना पाता कभी, पलकों से नींद जाती तेरे गुनगुना फिर वहीं सपनों से भरी लोरी की धुन आज फिर से वही सपने मुझे पिरोने दे माँ
लड़खड़ाए कदम जब भी मेरे, थामा तूने हर गुज़ारिश मेरी, हर ज़िद को, माना तूने गोद वाले तेरे झूले में मुझे फिर से झूला जिनमे गुज़रा मेरा बचपन, वही खिलौने दे माँ रोज़ बहाना नया बुनना, निवालो पे मेरे फेरना हाथों को हल्के से, गालों पे मेरे याद आती है बहुत माथे पे थपकी तेरी मुस्कुराहट तेरे चेहरे से, चुराने दे माँ मैं ज़माने के सभी तौर तरीकों में फ़सा ना तेरे पास बैठा कभी, ना रोया ना हँसा जो मेरी याद में सुखी हुई पलकें है तेरी उनको पुरानी यादों से भिगोने दे माँ लग के सीने से, थोड़ी देर मुझे रोने दे माँ थक सा गया हूँ, थोड़ी देर मुझे सोने दे माँ
By Ashish Nagori