- hashtagkalakar
माँ
By Vinay Banswal
उङता हूँ आसमानों में बुलंदियों के साथ
क्योंकि होता है सर पर मेरी माँ का हाथ
तन्हा हूँ इस जमाने में
याद आती है उसकी हर एक बात
हर एक बात ।।।
मेरी चोट में जो हसीं के धागे बुनती थी
बचाने को मुझे कभी पापा से भी सुनती थी
मेरे आँसुओं से पोंछा हुआ दुपट्टा ना धोती थी
मैं चैन से सो जाऊं सारी रात ना सोती थी
माँ का दुलारा पापा का प्यारा था
छोड गयी माँ मुझे जो मेरा सहारा था
घर बन रहे हैं टूटकर
मैने उस कमरे को यूँही रहने दिया
ली अंतिम साँस जिसमे
उनकी साँसों को उस कमरे में ही बसने दिया
अह हिम्मत नहीं है लिखने की
छूट गयी आस तमन्ना से जीने की।।।।।
ज़िक्र था उनका हर पन्ने पर
के कुदरत ने आज काम तमाम कर दिया
उडा दिए मेरी किताबों के पन्ने
और पूरे शहर में उनका नाम कर दिया
मेरा नाम उस आवाज़ में पुकारा जाए तो
कानों में तेज़ाब सा लगता है
वो और भरोसा....... अबे छोडो यार
ये तो सुनने में ही मजाक सा लगता है
एक याद को मैने सिगरेट के धुएं में मिला दिया
एक तस्वीर को मैने शराब की घूंट में उतार दिया
एक खत अग्नि के हवाले किया गया
अपने आंसुओं को धरती के गर्भ में मिला दिया
करके इश्क को अपने पंचतत्व में विलीन
एक दिल का इस तरह से अंतिम संस्कार किया गया
बेगुनाह होके एक सजा
खुद को दिए जा रहा हूँ
विछोह के दर्द का प्याला
अकेले पिए जा रहा हूँ
दुनिया समझ ना ले
इश्क़ को खेल का सौदा
रोज खुद मरकर इश्क़ को जिंदा किए जा रहा हूँ
मैं फ़रेबी हूँ लेकिन दिल को जिस्म का आदी नहीं बनाऊँगा
दिल टूटा है कई टुकड़ों में
इसे यूँ ही रखूँगा लेकिन दिल नहीं बनाऊँगा
मैं अकेला ही काफ़ी हूँ अपने सफ़र में
किसी को अपने दर्दों का साथी नहीं बनाऊँगा
मेरी आँखें सूखकर ही बंद हो जाएंगी
लेकिन इनको उनका दीदार नहीं कराऊँगा
उतर गया हूँ समंदर में टूटी किश्ती के सहारे
ये भी डूब गई तो तिनके को सहारा नहीं बनाऊँगा
वो चाँद तड़प जाएगा मुझे देखने
मैं घर की छत पर रोशनदान नहीं बनाऊँगा
वो खुदा ही है मेरा चाहे कितने ही इम्तिहान ले
पर किसी और को ख़ुदा नहीं बनाऊँगा
दिन निकल जाता है जब ये रात आती है
आधी मौत जी लेते हैं जब उनकी याद आती है
आँसुओं से निकल के जब होंठों पर उनकी इबादत आती है
ये रात इतनी गमगीन क्यों होती जाती है
कुछ नहीं कहता लेकिन लोग समझ लेते हैं
जब बातों में उनकी बात आती है
हर रात की कहानी है अपने आप को बहलाने की
बस फिर क्या आँखों में तस्वीर उनकी और नींद आ जाती है
आंसू होते हैं शब्द मेरे
तब कागज पर उतरते हैं दर्द मेरे
हृदय की चुभन जब कलम को मजबूर करे
तब कहीं बनते हैं दो लफ्ज़ मेरे
खुदा ने आज एक करामात लाजवाब दिखाई है
हां यारों आज वो झुमके पहन के आई है
वो लट उनके गालों को छूती हुई
और फिर क्या मुस्कुराहट दिखाई है
इस प्यारे से इंसान में आज नफरत की झलक मिली है
जब झुमके ने अपनी शरारत दिखाई है
हर बार उनके गालों को सहलाया उन्होंने
जब भी मेरी तरफ नजरें घुमाई हैं
ये कैसी कैकैशा है मेरे अंतर्मन की
जो बेचैनी आज नजरों ने आज झुमकों के साथ दिखाई है
कभी जुल्फों में लिपटे हुए कभी मुझे जला रहे है
उन्होंने भी सूट के साथ झुमके पहन के क्या साजिश रचाई है
बेवफाओं के बेख़ौफ़ होने में खुदा की कोई तो रज़ा होगी
मोहब्बत का कत्ल करने वालों की कोई तो सज़ा होगी
यूँही नहीं गुजरते दिन दीवानों के तन्हाईयों में
महफ़ूज़ रखने में माँ की कोई तो दुआ रही होगी
By Vinay Banswal