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माँ
By Simran Thakur
उस महानता को शत-शत प्रणाम
जिनसे ही जीवन का संचार।
जिनके कदम है स्वर्ग का द्वार
उनके आंचल में निहित रूप हजार।
स्वयं आधीशक्ति, सरस्वती, लक्ष्मी विराजमान,
मातृत्व है उनके जीवन का आधार।
दुआओ में हो जिनकी इतना असर
बंद करदे सभी रोगो का द्वार।
निस्वार्थ रहती जिनकी भावना
सर झुकाकर करती हूं मैं उनका सामना।
"माँ", ब्रह्माण्ड का सबसे शक्तिशाली अस्तित्व। "माँ," समस्त संसार में केवल एक शब्द जिसकी तुलना ईश्वर से करना गलत नहीं। स्वयं खुदा भी जिस संरचना को नमन करें, वह है, "माँ"। एक ऐसी ममता जिनके हृदय में सागर जितना प्यार है, "अनंत"। एक जीवन में माँ का स्थान सर्वोपरि है, और क्यों ना हो? अपनी कोख में नन्ही जान को सांसें देना, नौ माह अपने शिशु के लिए हजारो शौक हसकर बलिदान करना, अपनी जिंदगी जोखिम में डालकर एक नई जिंदगी को जन्म देना, ऐसा सिर्फ माँ ही कर सकती है। नवजात की एक मुस्कान से लिए जो दुनिया से लड़ जाए, वह है "माँ"। एक संरचना जिनकी माँ बनने के बाद कोई और ख्वाहिश नहीं होती। उनका सारा संसार उनकी संताने हो जाती है। अपने लिए माँ को कुछ नहीं चाहिए होता, कोई इच्छा शेष नहीं, कोई मांग नहीं, कुछ नहीं, सिर्फ एक उद्देश्य, अपने बच्चे को इस दुनिया की सारी खुशिया देना। हर हाल में अपने अंश की हिफाजत करना, उसकी सभी जरूरतो को पूरा करना, अपनी सारी ममता उस एक शिशु पर न्योछावर कर देना, यही सब बन जाता है माँ के जीने की वजह। अपने अंश को इस दुनिया में सांसे लेते देख एक मां का भी पुनर्जन्म होता है। वह एक मात्र प्राणी है जो अपनी जान जोख देती है अपनी संतान को कुछ बनाने मेंऔर मां की दयालुता तो देखो बदले में एक वस्तु नहीं मांगती। यही है मातृत्व का निस्वार्थ प्रेम। मानवता का ऐसा उदाहरण जिसे केवल मां शब्द ही औचित्य साबित कर सकता है।
माँ की दुआ के असर से बड़े-बड़े काम चुटकी में बन जाते हैं। इनके साथ होने भर से लगता है मानो खुद ईश्वर ने हाथ थामा हो। बीमार होने पर जब कोई दवा काम नहीं आती, तब सिर्फ माँ ही है जो हार नहीं मानती। न जाने कैसा जादू है इनके नज़र उतारने के तरीके में जिसके आगे महंगी औषधिया भी काम नहीं आती। जब एक माँ कुछ ठान लेती है फिर तो वह उस कार्य को पूरा करके ही छोड़ती है। थक्ता है हर व्यक्ति कभी न कभी। हमने पिताजी को मन ना करने पर कार्यालय से छुट्टी लेते देखा है, रविवार को आराम करते देखा है। खुद भी कई बार गृह-कार्य नहीं किया, स्कूल से अवकाश लिया ताकि आराम कर सके। परन्तु माँ को कभी आराम करते नहीं देखा। जितने समय आंखें खुली रही माता सिर्फ काम करती दिखी। एक दिन की भी छुट्टी नहीं लेती माँ। क्योंकि बगेर इनके सारा काम स्थिर हो जाता है। मानो जैसे कुछ अपनी जगह से हिल ही नहीं रहा हो। घर बेजान सा लगता है जैसे कोई रहता ही ना हो। सब बिखरा हुआ दिखलाई पड़ता है। केवल मां ही है जो हर एक वस्तु को अपनी जगह पर संभाल कर रख सकती है।
जो देवी रोज सुबह सबसे पहले उठ कर सबके लिए नाश्ता बनाएं, टिफिन तैयार करें, स्कूल और दफ्तर के कपड़ो को अच्छी तरह से धोकर, इस्त्री करके दे ताकि उनका परिवार भी समाज के अन्य परिवारो की तरह सभ्य और सुंदर लग सके। जो रात्रि में सबको भोजन देकर, सबके निद्रा ग्रहण करने के बाद खुद विश्राम करें, वही है ईश्वर की अद्भूत रचना, "माँ"। सबका पेट भर खुद का आधा रखती, जादू से दो पेस्ट्री सबमे बंट जाती क्योंकि माँ ही है जो "मुझे पसंद नहीं, मैं नहीं खाती" कहकर मना कर देती है। अपनी खुशी, इच्छाओ को नजरंदाज कर सबकी जरुरतों को आगे रखती है, सिर्फ जननी ही एक परिवार पूरा कर सकती है। सबको जोड़े रखती है, परिवार में अमृत घोले रखती है, गलती पर डांट कर अच्छे रास्ते पर चलने की सीख देती है, "माँ"। हर किसी का ख्याल एक समान रख कर, हर संतान को एकमात्र प्यार है करती है, "माँ"। अपने अंश पर कोई आंच आने नहीं देती, खुद दीवार बनकर डटकर मुश्किलों का सामना करती है। कभी चूंक से चोट लग जाए संतान को तो सबसे ज्यादा दर्द माँ ही सहती है। एक बच्चे की पहली शिक्षक होती है, "माँ।" अपने बच्चों को सर्वगुण संपन्न बनाकर अच्छे संस्कारों से सिंचकर पूरी तरह से तैयार करती है। कोई नहीं चुका सकता उस महान आत्मा का कर्ज जो हर क्षण त्याग देती है अपनी सुविधाओ का, मात्र दूसरो की मुस्कान के लिए।
माँ की परछाई एक शीतलता है, एक राहत जो हमें उनसे दूर होने ही नहीं देती। उनका बेइम्तिहा प्रेम, निस्वार्थ भाव, अद्वितीय ममता, अकल्पनीय दयालुता जैसे अनेको गुण मेरे शब्द ही खत्म कर देते हैं। मैंने कभी एक मां से ज्यादा शक्तिशाली अस्तित्व नहीं देखा। कहीं भी उनसे ज्यादा दरिया दिल और बहादुर इंसान नहीं देखा। माँ की सबसे बड़ी विशेषता है कि उनके लिए अपनी संताने सर्वोपरी है, सबसे सुंदर, सबसे प्यारी। वह अपने अंश को ऐसे संजोह कर बड़ा करती है मानो उनके लिए उस हीरे से अनमोल और कुछ नहीं। इस दुनिया की कोई भी समस्या हो, समाधान केवल एक ही के पास हो सकता है, "माँ"।
वक्त के साथ जब सभी साथ छूटने लगते है। एक-दसरे से आगे निकलने की होड़ में सभी दूर होने लगते हैं। मतलब की दुनिया में हम खुद को अकेला महसूस करने लगते हैं, दोस्ती जिम्मेदारियों के तले दब जाती है, तब मां ही है जो हमारा सहारा बनती है। एक उपदेशक बनती है जो हमे सही रास्ते पर ले जाती है, एक प्रेरक बनती है जो हमे हरने नहीं देती। जिंदगी के हर पड़ाव पर आगे बढ़ने का हौंसला देती है। एक दोस्त की तरह ख्याल रखती है, सारी बातें सुनती है, एक शिक्षक की तरह शिक्षा में मदद करती है। हमारी हर सुविधा को मेहत्व देती है। कहीं हम बीमार पड़ जाए तो रात-रात जागकर ख्याल रखती है माँ। दवा पर निर्भर ना होकर, ठंडी पट्टिया, काड़ा, पोष्टिक अहार जैसे न जाने और कितने नुस्खे अपना कर स्वस्थ कर देती है माई। मैंने माँ जैसा योद्धा नहीं देखा, जब तक किसी जंग को जीत न ले हार नहीं मानती।
इस तेजी से आगे बढ़ती दुनिया में जब कभी भी हमने खुद को निराश पाया, तब-तब मां ने हमारे सर पर ऐसे हाथ फेरा मानो किसी वृक्ष की छाया ने कड़ी धूप से बचाने के लिए आसरा दिया हो। जिंदगी में माँ ही सब कुछ होती है। जब कभी भी हम किसी मंच पर अकेले खड़े हुए, थोड़े डरे हुए-से, थोड़े सहमे-से। तब माँ ही है जो हमारा मनोबल बनती है, विश्वास बनती है। हमें हिम्मत देती है और कभी भी रुकने नहीं देती। वह इस दुनिया की सबसे खूबसूरत इंसान हैं। अगर खुदा आकर पूँछे कि "तुम्हे एक इच्छा मांगनी हो तो क्या मांगोगे?" तो मैं "इस दुनिया की सारी खुशिया उनके लिए मांगना चाहूंगी।" माँ ईश्वर की उन अविश्वसनीय रचनाओ में से एक है, जिसपर खुद ईश्वर को गर्व है। माँ का दिल जितना विशाल होता है, उतना ही नर्म भी। सबसे विनम्र अंग वह इनका जो संतान के एक माफ़ी मांगे पर पिघल जाता है। हज़ारो गलतियों को माफ़ करने की क्षमता है इस विशाल हृदय में। हर गलती को ठीक करने का हुनर भी। न जाने कैसे कर लेती हैं मां इतने सारे काम एक साथ। याद है? जब हम मेहनत कर रहे थे जिंदगी में कुछ मुकाम पाने के लिये, अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिये, अपने माता-पिता को गर्व महसूस कराने के लिये। तब हम अकेले नहीं थे माँ हमारे साथ थी। हर पल माँ साय की तरह साथ खड़ी थी मानो जैसी हमने एक पल में फरमाइश की "ये चाहिए" और दुसरें ही पल झट से सामने रखने के लिए तैयार। रात-रात भर जाग कर मेहनत सिर्फ हमने नहीं की, माँ भी साथ जगी रही। बल्की यह कहना उचित होगा माँ ने हमसे ज्यादा अपना सर्वश्रेष्ठ दिया। किसी भी इंसान की कामयाबी में सबसे पहला हक माँ का ही होना चाहिए। अगर एक माँ बलिदान न करें तो दुनिया में लोगो के लिए आगे बढ़ना बहुत मुश्किल हो जाएगा। उनको इज्जत मिलनी ही चाहिए जो साक्षात प्रभु का अवतार हो। सही मायने में माँ का मातृत्व ही सच्चे सम्मान का हकदार।
ऐसे ही नहीं स्वयं ईश्वर भी अपनी संरचना के आगे नतमस्तक है। इतने त्याग और सब्र तो बस एक माँ ही कर सकती है। बचपन तो होता है उल्लासनीय, तब सब लगता है हास्य कथा। परन्तु युवावस्था में प्रवेश कर समझ आया कितना जरुरी है एक माँ का शिक्षित होना। माँ के ज्ञान मातृ से ही समस्त परिवार में ज्ञान भर जाता है। क्योंकि वह अपने बच्चों में मानव मूल्य, प्रकृति के प्रति योगदान, अच्छे या बुरे की समझ, प्राकृतिक संसाधनों को कम मात्रा में अपयोग करने की जगरुकता, हर किसी का सम्मान करना जैसे अनेको विषयो पर शिक्षा प्रदान करती है। बचपन से ही बच्चों में हर वस्तु का मेहत्व जगाकर भविष्य के लिए उनका संरक्षण सिखाती है। एक मां जाने-अनजाने एक देश का पूरा भविष्य उज्जवल बना सकती है। कम उम्र में हमारे लिए माँ का ज्ञान केवल कुछ बातें होती है, पर पर समय के साथ समझ आता है कि एक माँ उच्च स्तरीय शिक्षा अपने बच्चों को प्रदान करती है।
"माँ" एक ऐसा व्यक्तित्व जिनके लिए जीतना करलो कम है। जिनके बलिदानो के सामने महंगे उपहार भी फीके हैं। जिनके संघर्षो के आगे हर किसी का मस्तक इज्जत से झुक जाता है। जिनकी छवी खुद भगवान की झलक हो उन्हें सम्मान और प्यार के अलावा कोई दे भी क्या सकता है। परिवार के सदस्य संभल कर पैसा खर्च करें या नहीं पर हम हर पल मां को पाई-पाई जोड़कर घर की जरूरतें पूरी करते देखते हैं। माँ वह अनमोल रत्न है जिनकी कीमत सिर्फ परिवार ही समझ सकता है। कोई इस दुनिया में इतना अमीर नहीं जो एक मां का कर्ज चुका सकता है। मातृत्व खुद में एक ऐसा शब्द जिसे कोई भी विशेषण दे दो वे पूरा है। माँ से जुड़ा अंश हर भावना का मेल-जोल है। असंख्य शब्द जैसे देखभाल, त्याग, ममता, महानता, प्रेम, साथ, आस्था, एकजुटता, एकाग्रता, प्रेरणा इत्यादि कहू या माँ एक ही बात है।
अंत में माँ के लिए कुछ शब्द कहना चाहूंगी।
"मैंने हर पल तुम्हें संघर्ष करते देखा है, बिना मांगे सब कुछ देते देखा है, मुश्किलो का सामना मस्कुरा कर करते देखा है, मैंने तुम्हें खुशी दान देते देखा है, दुख की घड़ी में अपने आँसू छुपाते देखा है, कांटों को बिना डरें पार करते देखा है, दर्द में काम करते देखा है, अपना हिस्सा दुसरो को बाटतें देखा है। मैंने तुम्हारे इतने रूप देखे माँ, पर तुम्हारे मातृत्व जैसा अस्तित्व नहीं देखा।"
By Simran Thakur