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मगर

Updated: Dec 22, 2023

By Abhimanyu Bakshi


मेरा शहर रौनक़ों का शहर है,

मेरा दिल क्यों है वीरान मगर।


महफ़िल में तो चाँद भी आये थे,

फिर भी था सब सुनसान मगर।


मौसम अचानक ख़ुशनुमा हो जाता है,

मैं मुसलसल रहता हूँ परेशान मगर।


बड़ी शिद्दत है हमारे काम में,

नतीजा देखकर होता है गुमान मगर।


बरसों से इसी शहर के बाशिंदे हैं,

हम सबसे हैं बिलकुल अनजान मगर।



बढ़ चुकी है संजीदगी अब हमारी,

तुम्हारे होते कुछ तो थे शैतान मगर।


अक़्ल जानती है कि वक़्त बदलता है,

दिल ठहरा जज़्बाती नादान मगर।


यादें बस जाती हैं ख़ुद-ब-ख़ुद ज़ेहन में,

यादें भुलाना क्यों नहीं आसान मगर।


By Abhimanyu Bakshi






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Kartik Pahwa
Kartik Pahwa
Jan 11
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piyushgarment
Jan 11
Rated 5 out of 5 stars.

GBU

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