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फतह
By Kunal Verma
एक सूरज ऐसा उगेगा,
जहाँ ये जहान मेरा होगा।
हर शबनम पर मेरी जीत की रोशनी होगी,
हर मक़ाम मेरे छांव में आना चाहेगा।
मुसाफिर अपनी मंजिल ढूंढते,
मेरे अफसाने गुनगुनाएंगे,
बतलाएंगे,
की जीत से बड़े साहिल,
हमने हार की कश्ती में तैरे थे,
डूबना पड़ा था मुझे भी,
ये जानने के लिए
की समंदर कितने गहरे थे,
वह बताएंगे,
की लहरों की तासीर फ़ौलादी थी,
ये चाहते तो हर कुछ छिन ले जाते,
पर चट्टानों की फितरत पिघलने की नहीं,
ये अंत मेरा दिखलाएगा।
एक सूरज ऐसा उगेगा
जहाँ ये जहान, मेरा होगा।
By Kunal Verma