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दुख
By Utkarsh Mishra
सुख को बाहर खोजते रहना
हमारी नश्वरता का प्रमाण है
हमने महल बनाये
नित नई सभ्यताओं को जन्म दिया
परंतु अछूते रहे तो सुकून से
हमने ऐश्वर्य को समझा
जीवन की पराकाष्ठा
उसे खोजने के पैमाने
हम दिन प्रतिदिन इज़ाद करते रहे
नौकरी चाकरी धन दौलत
टूटना, बिखरना, शोषण, पोषण
उस भौतिकवाद से उपजा
जो हमारी बनाई दुनिया के
बौनेपन का प्रमाण है
वास्तव में मनुष्य होना
तो यह जान लेना है
सुख उपजता हमारे भीतर से है
सुख उस परमानंद की यात्रा है
जो पूर्ण होती है
भीतर मौजूद परमात्मा के अंश से
बाकी सब जो बाहर है
रिश्ते नाते अपने पराये
वो ढह जाएंगे किसी भी क्षण
जैसे ढह जाती है जवानी
या जैसे जल उठता है समूचा वन
और शेष रह जायेगी तो केवल राख
इस उजड़े वन में भोर की किरण भाँति
चमकेगा भीतर जाग्रत हुआ परमानंद
जिसकी अनंत शक्ति सुख को खोजने नही
अपितु दुख से कभी ना हारने की ताकत देगी
क्योंकि विजेता वो नहीं जो सब जीत गया
विजेतावहीहैजोकभीहारानहीं।
By Utkarsh Mishra