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दंश
By Sachin Madhukar Gote
विध्वंस कि एक दंश में
काल का एक अंश है।
जो रंग है इस खून का..
वो रूह का सारांश है।
है तंज पर सृष्टि अनंत
है घाट पर ज्वाला ज्वलंत
जो है दहक अब इस जिव्हा पर
देह का अपभ्रंश है
मदमस्त है ये दल अचल
नाश नाद का द्वंद है।
जो अटल था कल कहीं पर
इस समय क्यों षंढ है..
By Sachin Madhukar Gote