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औरत
Updated: Jun 10
By Ayushi Jain
प्रेमी को प्रेमिका
दिल को दिलरुबा
हर शाम को हसीना चाहिए
हर वक्त औरत चाहिए
फिर भी औरत पैदा नहीं होनी चाहिए।
बुरखे में माशूका
साड़ी में हमनवा
सलवार में महबूबा चाहिए
हमें अपनी औरत एक लिबास मैं और
औरों की बेइज्जत पड़ी हुई चाहिए।
तरक्की के पिछे
बिस्तर में निचे
बस खड़ी रहे आंख मीचे
और हर खुशी में तुम्हारा नाम होना चाहिए
लेकिन नाकामयाबी में औरत पर थप्पड़ का ताज होना चाहिए।
बदल रहा है वक्त
बदल रही है रीत
बदलती आवाम होनी चाहिए
हर औरत के सम्मान का पैगाम होना चाहिए।
न दो हमे तावज्जू कतार में आगे रहने की
न दो हमे रियायत हमारे चाल चलन की
न करो हमसे शिकायत मनमानियां करने की।
मन मर्ज़ी करने की इजाजत नही चाहिए
तन ढकने के लिए निश्चित पोशाक नहीं चाहिए
बिदाई में दहेज का भार नहीं चाहिए।
हम वो सब कर लेंगे जो करते है मर्द
हम सेह लेंगे बहते लहू का दर्द
बस तू समझ ले हमारी शक्ति का अर्थ।
हां, एक ऐसा ही संसार होना चाहिए
हमे आगे नहीं, साथ चलने का अधिकार होना चाहिए
By Ayushi Jain