- hashtagkalakar
आदत
Updated: Jan 13
By Romal Bhansali
मैं समंदर से कभी बातें किया करता था,
उसकी लहरें मेरी आवाज़ को अपने आगोश में ले लेती थी |
मैं सितारों से कभी नज़रें मिला लेता था,
उनकी रोशनी मेरे चेहरे पर मुस्कान लाती थी |
मैं किताबों से कभी गुफ्तगू कर लेता था,
उनके शब्द मेरे कानो में सरगम की तरह गूंजते थे |
मैं रेत से कभी खुद को ओढ़ लेता था,
उसकी ठंडक मेरी रूह को सहलाती थी |
फिर ना जाने किस दौर में आ पहुंची थी ये जिंदगी,
रेत फिसल सी जाती थी, तारे छिपे छिपे से रहते,
किताब के पन्ने गूंगे से थे, और समंदर के मोझे गेहरे |
पर में रुका नहीं, थका नहीं, हारा नहीं, झुका नहीं,
यकीन था मुझे की वो आलम फिर आएगा,
क्योंकि ये गिरकर उठने की आदत अभी बाकी थी |
By Romal Bhansali