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क़ैदी
By Nitika Soin
बाग़ी के हक़ में फैसला दिया जाता है,
कह दो दुनिया से अब इश्क़ हुआ जाता है।
हम से सुनो उड़ना कितना दुशवार है यारों,
आँखों में अक्सर बादलों का धुआँ जाता है।
ये जुआ-ए-शिरीन तुम्हे ललचाने के लिए है,
जो छूता है इसे तो बस बहता हुआ जाता है।
कितना ही होशियार बेदार हो कोई,
वापस तेरी बातों से उलझा हुआ जाता है।
उसको माज़ी की क़ैद से अब रिहा करे कोई,
कहीं भी जाए वो, याद से लदा हुआ जाता है।
By Nitika Soin