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हलचल

By Samiksha Garg



बड़ी भुलक्कड़ सी थी वो

पर उसे खिलखिलाता हस्ता देख

उसमे खो जाना नहीं भुलती थी।





बड़ी उलझी-सुलझी सी रहती थी

कहना कुछ होता था

कह कुछ जाती थी,

पर उसकी आँखों में झाकती जब वो

बिना कुछ कहे,

बिना कुछ सुने

सब समझ जाती थी।


दुनिया वक्किफ न थी उसकी इन अदाओं से

पर वह भी यह सोच कर हस जाती थी

कि रक्खा क्या है इस दुनिया में,

उसकी तो पूरी दुनिया ही

एक शक्स में सिमट जाती थी।।



By Samiksha Garg




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