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सुनो!
By Manish Upreti
सुनो! तुम आ तो जाओगी
फिर जाओगी क्या?
सुनो! सुबह पंछियों के शोर से पहले
मुझे उठाओगी क्या?
सुनो! वो भीगे-भीगे गेसुओं को
मेरे लबों पर फिराओगी क्या?
सुनो! सभी ने रंग-रूप से ही परखा मुझे
मेरा व्यवहार तुम समझ पाओगी क्या?
सुनो! किताबों में सर खपा के बैठूंगा जब
गर्मा-गर्म चाय पिलाओगी क्या?
सुनो! तुम आओगी क्या?
मेरे अरमानों को हक़ीक़त बनाओगी क्या?
सुनो! अबस सी बेज़ार ज़मीं पर
खुशनुमा फूल खिलाओगी क्या?
सुनो! रूठा नहीं मैं किसी से ज़िन्दगी भर
तुमसे रूठूँ तो मनाओगी क्या?
सुनो! तुम आ तो जाओगी
फिर जाओगी क्या?
By Manish Upreti