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साथी

By Bhairavee Oza


कुछ देर से ही सही

चार कदम ही सही

कभी अपना भी हाथ थाम लेना

बेख़ौफ़ हँसी की खोज का साथी कभी अपना भी बन लेना

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बाहर तराशना उतना ही जितनी दुनिया अपना सके

अंदर गहरा समुद्र है ग़र मंथन कर जान सके

मृगतृष्णा से खोखले इस समाज में भटक मत लेना

निर्मोही फ़क़ीर सा एक छोटा सा सफ़रनामा जी लेना

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कुछ देर से ही सही

चार कदम ही सही…

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दो पल का कारवाँ भी मौसम कई दिखाएगा

हिस्से तेरे बाढ़ और सावन दोनों लाएगा

सावन में सराबोर हुई आँखों को बाढ़ में बहने देना

ज़रा ठहरकर भीतर अपने टूटा आशियाना फिर बना लेना


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कुछ देर से ही सही

चार कदम ही सही…

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वसुधा गोल सही , बातें सीधी बताती है

कठोर तेरी वेदनाओं में भी कर्म में अपने अडिग रहती है

प्रतिबिंब अपना बेगानी चक्षुओं में मत देख लेना

शांत जल से अपने मन को कर, अपनी कहानी खुद जान लेना !


By Bhairavee Oza







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