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सांझ
By Kanchan Tanwar
आज सांझ फिर विदाई ले रही हैं
दो कदम चल के
दो कदम ढल रही हैं
ढलती उम्र सी
शाम जा रही हैं
बुढ़ापे में आती झुर्रियों सी
सवेरे घर से निकले
पंछी भी घर को जा
रहे हैं
मनमर्ज़ी करके
छलांगे लगा
फुर्र से उड़ते हुए
पहाड़ो की गोद में
ढलता सूरज
जैसे माँ की गोद में
सोता शिशु
इत्मीनान से
By Kanchan Tanwar