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समाज
By Utkarsh Mishra
उस समाज में जहाँ
भाई सियासत करता है
भाई की मौत पर
जहाँ पूरे परिवार को
आशियाना देने वाला बाप
बैठा रहता है बुढ़ापे में
अकेले, निसहाय और बेचैन
वहाँ माँ का प्रेम
ईश्वर के होने का प्रमाण है
वह संसार जहाँ
रिश्तों में दोगलापन मौजूद हो
जहाँ खुशी और ग़म के पैमाने
तुम्हारे हिसाब से नहीं अपितु
समाज के मापदंडों से तय हो
वहाँ दोस्ती शाश्वत सत्य का प्रमाण है
वो संसार जहाँ सफलता पर सराहने वाले
तमाम लोग मौजूद हो
और असफलता पर तंज कसने के लिए
सदैव बेचैन हो
वहाँ असफलता में भी साथ बैठकर
जश्न मनाते दोस्त भुला देते है तुम्हारा हर गम
वे कर देते है उजागर जगत मिथ्या को
और ताकते रह जाते है
सफलता के अत्याचारी मापदंड
इस अनंत जश्न के तांडव को
वह समाज जहां प्रेमियों को
बाँट दिया जाए
जाति धर्म के मानवीय पाखंड में
और काट दिए जाएं उनके पर
वहाँ हर इतवार को तुम्हारा प्रेम पत्र
प्रमाण है कि ईश्वर ज़िंदा रखना चाहता है
इस सकल संसार को
हम दिन प्रतिदिन बढ़ते जाएंगे
अंधकार की तरफ
हम फंसते रहेंगे जायजाद और झूठे स्वाभिमान में
परंतु ईश्वर रखेगा सदैव उन पर अपनी छत्रछाया
जो इस घोर विपदा के समय मे भी
नहीं छोड़ेंगे प्रेम का मार्ग
जिनका दिल क्रंदन कर उठेगा
किसी भूखे को सड़क पर बिलखता देख
जो बनेंगे बूढे माँ-बाप का सहारा
जो नहीं थोपेंगे सफलताओ के मापदंड
जो तोड़ेंगे धर्म और जाति द्वारा खड़ी की गईं दीवार
क्योंकि ईश्वर ने वादा किया है
अधर्मियों के संघार का
क्योंकि ईश्वर का वादा इंसानियत से है
और इंसानियत धर्म परायणता को
बनादेतीहैसुदृणऔरअटल
By Utkarsh Mishra