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सपना
By Yati Manglik
बचपन में बढ़ने का सपना लड़ते-लड़ते सुलह करने का सपना, कोई रात नहीं,
जिसमें सपने ना बने पूरा करने की सोची तो किसे चुनें।
माँ कहती कुछ बनने का सपना देखो तो हँस के कहते ‘अभी उम्र पड़ी है’,
आज 40 के हो गए तो डर लगता है कि काश ये उम्र यहीं रुक जाए और फिर से सपने देखने का वक्त मिल जाए।
सपनों की जब खुली पिटारी तो याद आ गई बचपन की यारी,
कैसे सफर बेटी से माँ का तय करने की हमने की तैयारी।
सपना देखा उड़ने का मैंने पर पंख नहीं यह मैंने जाना,
जब निराशा से घिरा मेरा मन तब साथी ने हाथ ये थामा,
पंख तेरे मैं बन के दिखाऊं ये मेरे बच्चों ने ठाना फिर क्या था,
उड़ने लगी मैं, और हाथ आ गया खुशियों का खजाना।
By Yati Manglik