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शोषण
By Dr. Suboohi Jafar
शोषण के विरुद्ध अधिकार, मौलिक अधिकार हैं,
जो व्यक्ति को उसकी गरिमा बनाए रखने में मददगार हैं,
अनुच्छेद 23, 24 और मानव तस्करी इसमें सम्मिलित हैं,
ग़ुलामी, जबरन मज़दूरी और बाल श्रम को करते प्रतिबंधित हैं।
1975 में यह अधिकार संवैधानिक रूप से मान्य हुआ था,
जब बंधक मज़दूरी प्रथा को देश भर में ग़ैरक़ानूनी घोषित किया था,
1997 में "बाल पुनर्स्थापना कल्याण कोष" को स्थापित किया गया था,
भारत सरकार ने 6 माह में बाल मज़दूरी ख़त्म करने का निर्देश दिया था।
भारत में शोषण के इतिहास की लंबी कहानी है,
अनेक मज़दूरों ने, ज़मींदारों और राजाओं के घर बिताई ज़िंदगानी है,
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, जैसी जातियों में बँटी समाज की लेखनी है,
शूद्र हीन है, बुरा है, अशुभ है, ऐसी सबकी मनोवृत्ति है।
शोषण में न केवल शारीरिक दुर्व्यवहार, अपितु ओछी मानसिकता भी शामिल है,
इसके अनेक रूप हैं, जिसमें मज़दूरी, जातिगत, यौन, भावनात्मक और सामाजिक शोषण सम्मिलित हैं,
लड़का और लड़की में भेदभाव भी इसी की एक पद्धति है,
जहाँ लड़कियों को दी जाती पराया धन और बोझ जैसी उपाधि है।
यदि भारतवर्ष को एक स्वस्थ और सुंदर राष्ट्र बनाना है,
तो इन कुरीतियों और प्रथाओं को जड़ से मिटाना है,
शोषण के लिए शोषक ही नहीं, शोषित भी ज़िम्मेदार है,
आवश्यकता है साक्षरता की, क्योंकि संविधान ने दिए सबको अधिकार हैं।
By Dr. Suboohi Jafar