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वजूद
By Pravin Mane
क्या में वो हूं जो में ढिखाई देता हूं,
औरो के ख्यालो से पल पल डर डर जीता हूं ..
या मैं वो हूं जो मैं कभी में अपने आप से सवालों में मिला करता हूं,
या वो जो में अपने आप को ख्वाबो में देखा करता हूं ..
इन बंदिशों , कश्मकश के तूफ़ानो से परे अपने आप को महसूस किया करता हूं,
शायद वो तो मैं नहीं ..
या इस बेवफा जिंदगी से बेद्खल कुछ उन्स भरी आज़ाद सांसों का मतलब तो में नहीं..
या किसी गुमशुदा परिंदे की बेगुमान,
बेमकसद उड़ान का नाम तो में नहीं..
अगर में वो हूं ही नहीं तो मुझे अपने होने पे इतना गरूर क्यों हे,
इस ढकोसले से भरी जिंदगी जीने से तू इतना मजबूर क्यों है..
कौन हूं मैं, इस का ज़िक्र हमेशा दिल करता रहेगा,
जब जब इसे अपने वजूद के होने का शक होते रहेगा..
By Pravin Mane