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रोटी

By Narjeev Singh


मंज़िल है रोटी

ज़िन्दगी भी रोटी

हम क्या सोचे जग के लिए

जब पेट में ना हो रोटी

है ये दुनिया बहुत बड़ी

हमारी दुनिया है बहुत छोटी

मंज़िल है रोटी

ज़िन्दगी भी रोटी


जी रहे है हम ज़िन्दगी

बस,जैसे एक झोंपड़ी टूटी-फूटी

न चाहे हम कुछ भी

बस,चाहे हम दो वक़्त की रोटी

मंज़िल है रोटी

ज़िन्दगी भी रोटी


मुश्किल से होता है हमारा गुज़ारा

न हमने किसी से है मांगा

न खुदा के सिवाए किसी को पुकारा

है अगर हमको उस खुदा ने बनाया

फिर कैसे देख रहा है वह ये नज़ारा

मंज़िल है रोटी

ज़िन्दगी भी रोटी





किसी की न हो ऐसी ज़िन्दगी

करते है हम दुआ

भुला देंगे हम भी वक़्त के साथ-साथ

जो हमारे साथ हुआ

मिले चाहे एक वक़्त की रोटी

खाएगे मिल बाँट के रूखी सुखी

मंज़िल है रोटी

ज़िन्दगी भी रोटी


समय-समय पर नहीं मिलती है रोज़ी

फिर कैसे खाएं हम रोटी

घर में है एक छोटी बेटी

सो जाती है जो

भूख से रोती-रोती

मंज़िल है रोटी

ज़िन्दगी भी रोटी


By Narjeev Singh




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