- hashtagkalakar
यकीन
By Rajesh Kumar Verma
यकीन इतना
ज्यादा था
दुनिया वालों पर,
जो भी मिला
उसे दोस्त
बनाता चला गया।
कहां पता था
इन्हीं दोस्तों में कोई
दगाबाज भी है,
वजह साफ थी
किसी द्वारा
अभी तक
छला नहीं गया।
जब तक
समझ पाता
उसकी छलिया
अदा को,
तब तक वो
अपना काम
कर गया।
एक दोस्त ने
आगाह भी
किया था
सभी लोग
अच्छे नहीं होते
अच्छा तो ये है
दोस्त कम ही हों
मगर जो हों
सच्चे हों।
जांच परख
कर ही दोस्त
बनाया करो,
वरना एक दिन
पछताना पड़ेगा,
कहां मानता था
मन मगर
जो भी मिला
अपनाता चला गया।
मुझे कौन छलेगा,
यकीं खुद से
ज्यादा था
दुनिया वालों पर,
मगर वो
शुभ घड़ी
भी आई
जिसके अंजाम
का अंदेशा
नहीं था मुझे।
मगर उन्हीं में से
एक'अंजाना राही'
के साथ खेल,
खेल गया।
By Rajesh Kumar Verma