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मीरा

By Komal Paradkar





एक ऐैसी भी मीरा थी।

गलतीसे कलियुग मै आयी थी।।

दिनरात वो जिसको पुजती थी ।

आंखे उसके लिए बिछाती थी।।


कान्हा को ये फिकर ना थी।

गोपियों के संग रास जो रचाइ थी।।

वक्त भी कैसा ये अजीब आगया।

ना याद रही उसे रुक्मिणी और ना राधा।।


खोगया वो बस अपनी ही धून मै।

राधा भी तो गुम है खुदको सजानेमे ।।

चिंता है रुक्मिणी को बस अपने संसारकी।

एक मीरा को तलाश है खोये हुए प्यारकी।।


By Komal Paradkar







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