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मध्य
By Krati Gahlot
ये जो दो छोरों के बीच की जगह है
ये मेरे लिए नहीं है।
कोफ़्त होती है मुझे,
काले और सफ़ेद के बीच की अस्पष्टता से।
मैं बनी ही नहीं हूँ,
मध्य में रहने के लिए।
या तो इस पार,
या तो उस पार।
प्यार करुँगी तो इतनाकि दुनिया मिसालें देने लगे
और नफरत पर उतर आऊंतो फिर शायद तुम्हारा अस्तित्व भी भूल जाऊं।
पर इस दुनिया को लुभाता नहीं है
मेरा जीने का ये तरीका।
जब तब मुझे खिंच कर
लाना चाहती है मध्य में।
मिलवा देती है मुझे ज़िन्दगी तुम जैसों से
जिनके लिए मध्य में सुख है,
आम ही ख़ास है।
तो तुम खुश रहो
औसत में,
मैं रहती हूँ
छोर पर सुखी ।
मिलेंगे शायद किसी दिन,
अगर मैं निश्चय करूं
चरम को त्यागने का
क्योंकि तुमसे वो
मध्य छोड़ा नहीं जायेगा
आदि हो तुम उस आम सी जगह के
क्योंकि वो तुम्हारी पहचान है
औरअपनी पहचान छोड़ने की कला
संसार ने सिर्फ औरत को सिखायी है।
By Krati Gahlot