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बदूआ
By Paras Minhas
ना कर इतनी नफ़रत मुर्षद, तूने वफ़ा की राहे पाली है।
अब क्या उमीद रखता है तू उससे, अरे उसका तो दिल ही ख़ाली है॥
क्या सुनोगे बात करे भी वो, वही ना फिर जो जज़्बात बुनोगे ?
क़हता हूँ अब भी मान जाओ,
जीना चाहते हो हक़ीक़त तो ख़्यालो से बाज आओ।
और
अब तुम् भी अगर ये कहो के तुम्हारा प्यार सच्चा है,
तो फिर ठीक, जो तुम्हें लगे वो अच्छा है।
मग़र ख़ूल जाएँ उस रोज़ जो तुम्हारी आँखें,
तो फिर न कहना,
एहसास सा जताएँ तब हमारी बातें,
तो फिर न कहना,
खुल जाएँ हर राज़ की बातें,
तो फिर न कहना,
जो एतबार, एतराज़ में बदल जाए,
तो फिर न कहना ॥
और
क्या कहना सही या ग़लत, बस अब तुम न कहना ।
मानो मेरी बात उस गली में अब तुम न रहना॥
जिस गली से वो शख़्स हर रोज़ गुज़रता है,
कहकर तुमको अपना दिल में उतरता है॥
By Paras Minhas