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बड़ी

Updated: Jun 2

By Ankita Garg



नहीं बनना समझदार,

नहीं कहलाना ज़िमेदार,

मैं भी नादानियाँ करना चाहती हूँ,

छोटी-छोटी नहीं थोड़ी बड़ी गलतियाँ करना चाहती हूँ,

समझदार बनके बहुत बातें सुनी हैं मैंने,

ज़िमेदारी की आड़ में बहुत फटकारें खाई हैं मैंने,

अब गलती कर डांट खाने का मन करता है मेरा,

बच्चा बन सब भूल जाने को दिल करता है मेरा,

बड़ी बनना मैं कभी नहीं चाहती थी,

बच्चे जैसे मैं भी थोड़ा सा प्यार चाहती थी,

बन के बड़ी कुछ हासिल नहीं किया मैंने अब तक,

फ़िज़ूल बातें क्यों सुनु मैं और कब तक,

सबसे बड़ी बेटी होना मेरी इच्छा नहीं थी,



सब छोड़ के भाग जाऊँ ऐसा मन था पर ऐसी शिक्षा नहीं थी,

बेटियाँ एक बोझ होती होंगी शायद सच ही होगा,

तभी तो उन बद-नसीब बेटियों का बाप भी रोता होगा,

मैं बेटी नहीं बेटा बनाना चाहती हूँ,

ज़िमेदारी के साथ बच्चों के जैसा सलूक चाहती हूँ,



मैं थक जाति हूँ कई बार सबका सोचते-सोचते,

खुद को खुद की मनपसंद चीज़ें ना करने से रोकते-रोकते,

मैं बड़ी नहीं बच्ची बनना चाहती हूँ,

ज़िमेदार नहीं अपने माँ-बाप की लाडली बनाना चाहती हूँ,

मैं समझदार नहीं ज़िमेदार कहलाना चाहती हूँ,

मैं सबका प्यार बस और थोड़ा सा प्यार चाहती हूँ..


By Ankita Garg




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