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बचपन
By Rashmi Mahish
न कोई उमीद, न कोई आशा
न किसी का डर और न कोई अभिलाषा
मौज - मस्ती और एक - दूसरे को पानी से नहलाना
हर पल मन में रहता, करना है कुछ नया तमाशा ।
खेल - कूद में अधिकतर समय बिताना
दोस्तों के साथ झगड़ो में फिर हल्ला मचाना
डॉट पड़े यदि मम्मी की
फिर झूठे - मूठे आँसू बहाना ।
सुबह हो या शाम दोस्तों के साथ
गली में बस हल्ला मचाना
जब रिमझिम - रिमझिम कर बरसात का आना
नहीं होता तब हमारी खुशियों का ठिकाना ।
शाम ढले थके - हारे घर लौट कर आना
खाना खाते हि सपनो की दुनिया मे खो जाना
मम्मी का प्यारे - प्यारे हाथों से सहलाना
सुबह होते ही मस्ति की नयी दुनिया बनाना ।
शैतान का नाम देता हमे जमाना
हमारा काम नही किसी को नुकसान पहुँचाना
यही तो एक पल है जिसे हर कोई चाहता है पाना
जानते है क्या हैं, हमारा प्यारा सा नटखट भरा बचपना ।
By Rashmi Mahish