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पिता

By Arushi Sharma


ख़ुद जल कर सूरज सा घर को रोशन करते वो,

लगते है क्रूर बड़े अंदर से सब पर मरते वो,

सन्तान पर दुख आये तो चट्टान से खड़े है वो,

पूरी उम्र घर से बाहर खून पसीना बहाते वो ,

फिर एक बार कहने पर ही जो माँगे ले आते वो,

उन्हें समझना आसान नहीं सागर से भी गहरे वो,



ताउम् अथक बोझिल कन्धों से भी,

चेहरे पर एक शिकन ना आने देते ।


जेब भले ख़ाली हो उनकी,

दिल से प्यार ना जाने देते,

भीतर से मोम बाहर से लोहे जैसा रूप तुम्हारा है,

है नहीं परवाह किसी की जो सर पर हाथ तुम्हारा है,

ख़ुदा ने भेजा है बनाकर उन्हें जहां में सहारा,

वो क़ुदरत का नायाब तोहफ़ा होते है पिता ॥


By Arushi Sharma




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