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पिता
By Budhraj Singh Khinchi
बड़ा कठिन है पिता होना।
यूँ ही कोई पिता नहीं होता।
किसी के गर्भ में बेइरादा बीज मात्र डाल देने से कोई पिता नहीं होता है।
बच्चे तो किसी बलात्कारी के भी हो सकते हैं लेकिन वो पिता नहीं होता है।
पिता होने के लिए करना होता है दायित्वों का निर्वहन।
पिता होने के लिए करना होता है जिम्मेदारियों का वहन।
पिता होने के लिए तुम्हें छिपाना होता है प्रेम के असीम ज्वार को, बिना प्रदर्शन किए।
पिता होने के लिए तुम्हें होना होता है कठोर अपने कोमल हृदय के उद्गारों का दमन किए।
पिता होने के लिए तुम्हें अपनाना होता है अनुशासन।
ताकि तुम्हारी सन्तान पर रहे ना किसी और का शासन।
पिता होने के लिए तुम्हें जानना होता है कि अस्तित्व बचाने के लिए संघर्षशील होना ज़रूरी है।
पिता होने के लिए तुम्हें जानना होता है कि अस्तित्व बनाए रखने के लिए सर्वयोग्य होना ज़रूरी है।
पिता होने के लिए तुम्हें तैयार करना है अपनी सन्तति को प्राकृतिक वरण के लिए।
पिता होने के लिए तुम्हें तैयार करना है अपनी सन्तति को सफलता के चरण के लिए।
पिता होने के लिए तुम्हें ख़याल रखना होता है उसके वास्तविक हित का।
पिता होने के लिए तुम्हें हमेशा प्रतिकार करना होगा उसके हर अहित का।
पिता होने के लिए तुम्हें दुनिया की नज़रों में कभी कभी क्रूर, निर्दयी, पत्थर दिल भी होना होगा।
पिता होने के लिए तुम्हें अपनी सन्तति की ख़्वाहिशों के लिए अपनी ज़रूरतों का जनाज़ा भी ढोना होगा।
पिता होने के लिए तुम्हें सिर्फ़ अपनी सन्तति के भले के लिए जीना होता है।
चाहे तुम्हारी सन्तति ही तुम्हें ना समझे तुम्हें उसके हिस्से का विष भी पीना होता है।
निःसन्देह माँ महान है उसका त्याग महान है ये सबको दिखता है।
लेकिन अपने बच्चों के लिए हरकदम बिकता पिता कभी नहीं दिखता है।
पिता अपना प्रेम और दर्द दोनों छिपाता है।
लेकिन औलाद की उफ़ भी नहीं सह पाता है।
अपनी सन्तति के कल्याण के लिए जीता साक्षात प्रेम ही पिता है।
पिता होने की महिमा यही है 'बुध' कि ईश्वर भी परमपिता है।
By Budhraj Singh Khinchi