By Banarasi
पाकर पनाह तेरे पांव में
इठलाती रहती सारे गांव में।
हर कदम पर गुनगुनाती
सभी पायलों का जी जलाती।
जब भी खुशी चेहरे पे छाती
रुनझुन कर सबको बतलाती।
खोकर अपनी हैसियत पायल
खुद को पांव से बड़ा बताती।
मैं के चक्कर में फसकर पायल
अपनी अहमियत को खोती जाती।
देख दूसरी पायल को पायल
ना जाने कितना शोर मचाती।
टूटे घुंघरू थम गया शोर
फिरे दिन हुई भोर।
पांव ने कहा सुन पायल मेरे साथी
किसलिए तू इतना इतराती।
मुझसे ही है तेरी ख्याति
फिर क्यों तू इतना इठलाती।
तू मुझसे है मैं तुझसे हुं
हम दोनो ही अधूरे है साथी।
ताल पे जब मैं थिरकूं
तेरी रुनझुन की आवाज सुहाती।
ता धिन से तिरकत धिन तक
नृत्य के गुलशन को महकाती।
साथ तेरा मेरा जैसे
बिन वसन ये मानव जाति।
मत कर तू अभिमान री पायल
सबकी हस्ती मिट ही जाती।
अब कोने में पड़ी पायल
सबको यही याद दिलाती।
By Banarasi
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बेहतरीन
पे