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पतझड़
By Pragati Yadav
उस दिन जब शोर हुआ, बंधक बना लिया
कहानी शुरू हुई
सच कहूं मैंने तो तुम्हे ऐसा कभी ना देखा था
तुम्हे बहुत ढूंढा, पर इतना शायद काफी ना था।
फ़िर एक बरस बाद वो रात आयी, जो तुम्हे ना ला पाई
खोज जारी हुई
दूसरी ओर परछाई ने पांव पसारे
देखते देखते घर बसाने लगी।
मैं कह भी दू अगर
जब तक तुम उसके साये में हो, रास्ता तो तय है
नहीं भटकोगे
पर इतना शायद काफी ना हो।
जिस पहर भी उससे फिर मुलाकात ना हो पाई,
शिकायत होगी और जख्म भी
नहीं! आदत तो समझ आती है
पर यूं कि पतझड़ की कीमत भी शायद समझ आने लगे।।
By Pragati Yadav