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नारी
By Arushi Sharma
दुर्गा सरस्वती लक्ष्मी तुम, अबाला नहीं हो सबला तुम,
तू अथाह प्रेम का सागर हैं,तू निच्छल करुणा की गागर है,
है तुझमें द्रौपदी जैसी आग, है सीता जी सा नम्रस्वभाव,
तू राधा जैसी प्रेमिका तू मीरा जैसी जोगन है,
जो भरती है हुंकार तू तो चण्डी जैसी लगती है,
जो रण में उतरे तू मर्दानी लक्ष्मीबाई कहलाती है,
फिर कहे तुझे क्यों मर्दानी तू तो स्यवं में नारी है ,
तू मदर टेरेसा बन कर ममता का पाठ पड़ाती है,
तू बन कल्पना चावला असमान छू आती है,
बात आन पर आये तू पद्मिनी बन जौहर कर जाती है,
जीतना तेरी फ़ितरत है ये तुझसे बेहतर जाने कौन,
तू तो इस दुनिया में भी एक जंग लड़कर आयी है,
अपने आँचल में दुनिया थामे आगे बड़ती जा नारी,
ख़ुद में ही सम्पूर्ण है तू ये जग को दिखा दे हे नारी,
फिर उठ विजय पताका लिए परचम फेरा दे हे नारी,
पथ में शूल बिछे हो कितने तू आगे बड़ती जाएगी,
इस पुरुषों की दुनिया में अपना नाम कमायेगी ।
By Arushi Sharma