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नारी
By Pragati Ishwarchand Sahuji
नारी नारी नारी जो है प्रतिभा से भरी
क्यू होरी है आज वो समाज़ को भारी
दिन रात घुमते है सडको पर शिकारी
तडप के मरती है वो पर ना तडपे बलात्कारी
नारी नारी नारी जो नई उमंगें है लारी
पर नहीं जीने देगी ये आवारा दुनिया सारी
बस 1 ही है ख्वाईश नारी सम्मान की हैआस
पर ना जाने क्यू हैवानौ की भुजती नही है प्यास
हररोज दिन कटते कटते रात है आती
फिर कोई नारी आग मे झुलस है जाती
ना कोई उसकी आवाज सुनता ना सुनता कोई चीख
जब वो हैवानौसे मांगती है अपने इज्जत की भीख
बस करो अब दुनिया वालो हर चीज का तमाशा देखना
और उस तमाशे को ताजा खबर बनाके मोबाइलोमे फेकना
मोमबत्ती जलाकर नारो से चिल्लाकर चार दिन मे चुप हो जाना
और फिरसे घूम फिरके कई सालो बाद लौट आना
इस चित्र को बदलने से पहले खुद को बदलना होगा
नारी पे बंधन लाने से पहले दूनियाँ को सम्भलना होगा
नारी के पहने हुये कपडो को देख के सोच बना लेती ये दुनिया
कहो भला अब क्या साडी मे लपेटले छोटीसी गुडिया
नारी नारी नारी अब है हालात की वो मारी
नही सही जाती अब ऐसी ये लाचारी
अगर ऐसा ही चलता रहा तो मच जायेगी हाहाकारी
कानुनकोबदलोऔरलटकादोहवसकेअत्याचारि
By Pragati Ishwarchand Sahuji