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धर्म
By Nisarg Shah
मैं वही चीज हूँ जिसकी वजह से
लोग एक साथ आते हैं,
मैं वही चीज हूँ जिसकी वजह से
लोग झगड़ने लग जाते हैंं।
जिस मनुष्य का कर्म हूँ मै,
उसी मनुष्य का धर्म हूँ मैं।
मैं कहीं से आया नही हूँ,
मुझे किसी ने बनाया है।
मुझे मनुष्य ने बनाकर,
इल्जाम भगवान पर लगाया है।
जिस मनुष्य का कर्म हूँ मै,
उसी मनुष्य का धर्म हूँ मैं।
मुझे बनाने वालो के इरादे नेक थे,
उनके विचार भी एक-से-एक थे।
आज मेरा अलग-सा उपयोग है,
पैसों के लिए मेरा प्रयोग है।
जिस मनुष्य का कर्म हूँ मै,
उसी मनुष्य का धर्म हूँ मैं।
गलती हूँ मैं मनुष्य की,
उन्होंने परवाह न की भविष्य की।
प्रेमियों के वियोग का मैं कारण हूँ,
नेताओ के झूठे वचनों का मैं आचरण हूँ।
जिस मनुष्य का कर्म हूँ मैं,
उसी मनुष्य का धर्म हूँ मैं।
By Nisarg Shah