By Vandana Batra
गाँव के छोड़ खेत खलियान
शुद्ध हवा और मिट्टी के मकान
दूर के ढोल पड़े जब कान
जुटाने जीवन का साजो सामान
शहर की कठिनाइओं से अनजान
देने खुद को नई पहचान
किसी ने खोल ली चाय की दुकान, कोई बन बैठा है दरबान
माली बनकर फूंक रहा कोई पेड़ पौधों में प्राण
बजरी, पत्थर, ईंट उठाकर देता कोई अपना श्रमदान
चौकीदारी करके हो गए किसी के दिन रात एक समान
किसी के जीवन की गाड़ी को लगे ड्रायवरी के पहिए चार
कुली बन कर सिर पर कोई ढोता कई किलों का भार
पेंटर होकर कोई बनाता दूजे के सपनों को रंगदार
कचरा उठाने से जिनके कारण चल रहा स्वछता अभियान
अपनी मेहनत के बलबूते बने ये सब हमारे जीवन आधार
देर से ही सही आओ दे दें इनकी सेवाओं का आभार
कहीं शर्म के मारे कर ना पाएं फिर उनसे आँख चार।
By Vandana Batra
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