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दर्द
By Juhi Srivastava
दर्द वो साथी है जो आपसे कभी जुदा नही होता, रेहता है सदा आपके साथ, आपसे कभी वो खफा नही होता !
दर्द की तो शुरुआत इस धरती पे कदम रखते ही हो जाती है..... जाति, पाति, रंग, धर्म, लिंग, पंथ और यहा तक की आपकी पह्चान तक आपके पिता के पद अनुसार थोप दी जाती है.
फिर चल पड़ता है सिलसिला दर्द का जब आपकी तुलना करने लगते है लोग ...वो चाहे पडोसी के बच्चे से हो या खुद के भाई बहन से .....घर से लेकर स्कूल तक ये तुलना ग्रस्त कर देती है हर बच्चे के मन को हीन भावनाओ से .....पर परवाह कहा इस समाज को इन सब से वो तो मस्त है अपने संकीर्ण विचारों में.....
कुछ जानकार कुछ अनजाने में देने लगते है दर्द अपने प्रश्नों से .....आपका रंग काला क्यों है....अरे कितने मोटे हो गए हो...तुम तो बोलते ही नहीं ...तुम तो पढ़ते ही नहीं ....नाटे हो, सुस्त हो, लम्बे हो, पतले हो...ये हो वो हो......हर किसी की ऐसी बातो से मन घबराने लगता है .....जैसे ही पता चलता है की कोई आया है...बहार भाग जाने का मन करता है.....कैसे बढ़ेगे बच्चे ऐसी बातों को सुनकर ... रोते है जो हर रात इस दर्द को सीने में दबाकर
फिर आता है जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव किशोरावस्था – जब भीतर से लेकर बाहर तक सवाल ही सवाल होते है....और ये तय करना होता है की सम्पूर्ण जीवन हमें क्या करना है और सच मानिये ये बहुत मुश्किल फैसला होता है क्युकी ना तो अनुभव होता है ना इतनी दूर की सोच पाने की छमता बहुत ही भाग्यशाली होते है वो जो जानते है उन्हें क्या करना है .....बाकी तो उस भेडचाल का हिस्सा हो जाते है…वो चाहे या ना चाहे इस समाज और माता पिता के दबाव में दब जाते है..
वही दूसरी ओर भीतरी बदलाव से आश्चर्यचकित रहते है.....क्योकि भले ही देश की आबादी दुसरे स्थान पर क्यूँ ना हो इसके बारे में बात करना जुर्म है हमारे समाज में.... दिशा निर्देष के आभाव में झूझते है हम ...जाने क्या क्या कल्पना कर लेते है....और कई तो इसी जानकारी के अभाव में गलत कदम उठा लेते है....रह जाता है तो सिर्फ दर्द की काश किसी ने सही मार्गदर्शन दिया होता.
ज्योही आगे बढती है जिंदगी एक ऐसे दर्द का सामना होता है ....जो यूँ तो एक हिस्सा मात्र है जीवन का पर इतना मजबूत है की कइयों की ज़िन्दगी ले लेता है ....कमाल तो ये है की इस दर्द भी उप-श्रेणिया है ....क्या सोच पाये आप मै किस दर्द की बात कर रही हूँ ?? .....जी हां सही समझा आपने ये प्यार का दर्द है ....जो कभी एक तरफ़ा होता है, तो कभी अधूरा ...कभी शुरू होने से पहले ही खत्म तो कभी केवल खवाबो तक ही सिमित रहता है.....एक अलग ही श्रेणी का दर्द है ये जो आपको दिखता तो नही पर भीतर ही भीतर खोखला कर देता है ...ये ही एक ऐसा दर्द है जो हम खुद को देते है ...कई तो आगे बढ़ जाते है इस से....पर ज्यादातर लोग इसे अपनी अंतिम साँस तक ढोते है...और यदि आप भावनात्मक रूप से मजबूत नहीं हुए तो इसपर अपने प्राण ही लूटा देते है....बालीवूड से लेकर टीवी की दुनिया तक हर कोई इसी दर्द को भुनाता आया है क्योकि ये ऐसी भावना ही है जिस से कोई अछुता नहीं रह पाया है ....ये किसी से बाँट तो नहीं सकता पर उन गीतों , फिल्मो के दृश्यों , किसी पात्र के जरिये फिरसे जीता है और कही ना कही उसी दुनिया में रहना चाहता है ...हमारे यहाँ तो ये बहुत आम बात है क्योकि दस में से आठ जोड़े तो ऐसे ही है जिनमे ना तो अपनापन है ना विश्वास है ... ढो रहे है शादी के बंधन को इस समाज और परिवार के डर से भले ही दोनों में प्यार ना इस पार है ना उस पार है .
खैर ये तो ज़िन्दगी है साहब आगे चल ही पड़ती है और फिर आता है अफ़सोस का दर्द ...जब आप चालीस की उम्र पार कर रहे होते है और पाते है की क्या कुछ नहीं करना था जीवन में, उस सपने की याद सताने लगती है जो कभी देखा था, आपका पैशन था वो पर दुनिया भर के दबाव में कही बसने की चाह में भूल से गए आप उस सपने को ...और अब जब वक़्त मिला तो पता चला की उस सपने को पूरा करने का वक़्त निकल गया है .....फँस चुके है आप इस दुष्चक्र में और दो ही रास्ते है आपके पास या तो जो जैसा चल रहा है चलने दे या फिर मेहनत और हिम्मत करे सब किनारे करके अपने सपने को प्राप्त करने करने के लिए प्रयास करे.....यहाँ मै बधाई देती हूं उन जोशिलो को जो ये भी करके दिखाते है ...वरना जनाब सौ में से निन्यानबे तो हार मान जाते है और ताउम्र कोसते है खुद को की काश मैंने अपने दिल की सुनी होती तो आज ये दर्द ना होता
बस अब क्या बचा है जिसपर आगे लिखूं मै...हां पुरे जीवन भर के बटोरे दर्द का पश्चाताप रह जाता है की काश मै कुछ कर पाया होता ...पर इस कम्भख्त वक़्त की कमी ने ऐसा जकड़ लिया होता है की पछताने और रोने के अलावा कुछ नही कर पाते है हम !
अंतिम में रह जाता है तो इन दर्दो से मुक्ति मिलने का दर्द और पल पल मौत के इंतजार का दर्द !!!
By Juhi Srivastava