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तलाश

Updated: Jun 10

By Nikhil Tandon



"परदेस में था बेटा, रोज़ी-रोटी की तलाश में,

माँ उसकी राह तकती रही, बैठ खुले आकाश में,

बुढ़ापा ले रहा था माँ को, हर रोज़ अपने आग़ोश में,

चाह कर भी न लौट सका, क़ैद था बेटा अपनी ही तलाश में




लौटा फ़िर एक दिन परदेस से, लेकिन तनिक देर से,

तब तक मुक्त हो चुकी थी माँ, जनम–मरण के फेर से,

न देख पाया आख़िरी झलक माँ की, बेटा अपने नेत्र से,

अग्नि की लपटें धू–धूकर उठ चुकीं थीं, उसकी माँ की देह से

तलाश पूरी हुई थी उस बेटे की, लेकिन तनिक देर से,

बाकी रह गया था सिर्फ़ उठता धुआँ, माँ की शैय्या के ढेर से"



By Nikhil Tandon




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