By Vinay Banswal उङता हूँ आसमानों में बुलंदियों के साथ क्योंकि होता है सर पर मेरी माँ का हाथ तन्हा हूँ इस जमाने में याद आती है उसकी हर एक बात हर एक बात ।।। मेरी चोट में जो हसीं के धागे बुनती थी बचाने
By Sanket S. Tripathi इन ऊचाईयों का श्रेय केवल मेरे शीश को ना दे पर्वत, पैरों के छालों से बनी ये विजय माला है; मुझे जाड़े की सर्दी छू ना सकी मेरे, पिता ने अपने सपनों तक का अलाव बना डाला है। By Sanket