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ज़िद
By Palak
"ऐसी औलाद से अच्छा था, ना ही होती"
ये कहते थे मुझे
"हमारी नाक कटवाते वक्त
एक बार भी, शर्म न आयी तुझे
हमारे बारे में भी , कभी तो
सोच लिया कर
हर बार अपने मन की
किया मत कर
सौ लाहनत है तुझपे"
पहली दफा सुना था
बचा रही थी उस सपने को
जो कभी मैंने बुना था
"जीते जी तो माँ को मार दिया
बाप की भी जान लेगी क्या"
रोता देख भाई बोला
"रोने से ये मान लेगी क्या"
काश मुझे पहले ही मार देते
तो ये दिन तो न दिखाती मैं
पहले ही मुझे प्यार न किया होता
दिल तो न दुखाती मैं
"इन हाथों से जिसके कभी आँसू पोंछे
वही इन आँखों में आँसू ला रही है
कितना मान था इस पर
वही हमारे लिए बदनामी ला रही है
जितना इसको प्यार किया
उतना ही बिगड़ती गयी
अपनी एक फालतू की जि़द के लिए
माँ बाप से लड़ती गयी
क्या जवाब दूँगी मैं, तेरी मासी को
ये तो बताती जा
क्यों हमारा जीना भी मुश्किल कर रही है,
ये समझाती जा
आज से मैं तेरी माँ नहीं
मुझे माँ कहने का हक़ तूने खो दिया
जिस बाप की तू मुस्कराहट थी
वो आज तेरी वजह से रो दिया
कल जब ये भी तेरी तरह ज़िद करेगा,
कहाँ से लाकर दूँगी
कोई बात नहीं
मैं भी कोई काम कर लूँगी”
वो सफेद कोट मेरी शान है
जिस पर मुझे मान है
"काश वो कोट किसी डॉक्टर का होता
जिसके लिए दाओं पर लगाई तूने
माँ बाप और परिवार की आन है
तुझे बस सेवा करनी थी
बस तू वही कर
हमारी नज़र का क्या है..
जो तुझे सही लगे
बस तू वही कर”
उस राह चलने के लिए
मेरी आँखें थी हर वक्त तरसती
"ऐसी औलाद से अच्छा था ना ही होती"...
By Palak