- hashtagkalakar
चांद
By Suchita Joshi
आज भी चांद निकलने पर
दौड़ पड़ती हूं छज्जे की ओर
इस पार से तकती हूं मैं
पर उस पार तू अब नहीं होता ।।
आज भी शीतल चांदनी रातों में
घंटों निहारती हूं चांद को
पर तेरे पास होने का वो एहसास
ना जाने क्यूं अब नहीं होता ।।
आज भी करवाचौथ के दिन
छेड़ते हैं सब तेरा नाम लेकर
पर मेरे चेहरे का रंग पहले सा
सुर्ख़ लाल अब नहीं होता ।।
आज भी चांद देता है गवाही
हमारे इश्क़ के फसानों की
तेरे झूठे वादों और कसमों पर
पहले सा यकीं अब नहीं होता ।।
इस व्हाट्सएप इंस्टा के ज़माने में
चांद वाला इश्क़ अब नहीं होता
सच बोलूं तो तेरा मेरा वाला चांद
पहले सा खूबसूरत अब नहीं लगता ।।
By Suchita Joshi