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गुरु
By Sanat Raj
बुद्धि से बल तक,
प्रश्न से हल तक,
विफल से सफल तक,
छल से निश्छल तक,
ये जो सफर है भूतकाल से इस पल तक,
गुरुओं के दिए गुणों पर नतमस्तक।
समुद्र से मरुस्थल तक,
चट्टान से बादल तक,
स्वर्ग से धरातल तक,
पाताल से प्रकृति के आंचल तक,
ये जो भूगोल है भूमि से थल तक,
गुरुओं को पूजती है सदियों से अब तक।
काटों से कमल तक,
कठोर से कोमल तक,
क्रोधित से शीतल तक,
व्याकुल से अटल तक,
ये जो परिवर्तन है पहल से अमल तक,
गुरुओं के महानता का प्रमाण है इस युग तक।
यूं ही नहीं गुरु ईश्वर का रूप कहलाते है,
उनके कर्म उनकी महानता बतलाते है,
ऋणी है ये धरा उनके उपकार की,
जिनकी वजह से हमने सारी अड़चने पार की,
गुरु शिष्य का ये रिश्ता यूं ही अमर रहे,
हर शिष्य पर सदा उसके गुरु का कर रहे।
By Sanat Raj