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कोना
By Krati Gahlot
अगर मैं तुम्हें कहूं
आंखें मूंद कर उस जगह को याद करो
जहां तुमने सुकून पाया हो,
या वो जगह जो तुम्हें अपनी सी लगती रही।
कुछ खुशियां जो दुनिया से बांटने को बहुत छोटी
और कुछ गम जो उससे बांटने को बहुत बड़े लगे|
उनके साथ तुम जहां बैठे रहे,
घंटों, महीनों, सालों या महज़ कुछ पल...
तो अमूमन तुम्हें एक कोना याद आएगा।
घर का, आंगन का,
हॉस्टल का, ऑफिस का,
बगीचे का, कैफे का,
कहीं का भी।
वो जगह जहां सबके सामने होते हुए भी,
आप नज़र नहीं आते।
जहां शायद कोई दिखावा नहीं करना होता,
जहां चाय पीने का मज़ा ही और होता है,
जहां दिल हल्का और मन शांत यूं ही हो जाता है,
जहां तसल्ली होती है कि
ज़िंदगी के थपेड़ों को झेलने को भी
अभी बहुत ज़िंदगी बाकी है|
अब फिर आंखें मूंदना,
जरा ठहर कर सोचो,
कुछ इंसान तुम्हें उन कोनों की तरह नहीं लगते?
By Krati Gahlot