By Srishti Gupta
मरासिम हैं तकल्लुफ हैं
वफ़ा हैं बेवफ़ाई है
ये वो कुछ लफ्ज़ हैं जिन तक
मोहब्बत की रसाई
न जाने कितने घर टूटे
न जाने कितने घर डूबे
और जो टूटा वो खा़ई है...
शुरू होता है क़िस्सा ऐसे
जैसे पहला जाम़ आए
जहां ज़्यादा गए अंदर
वहां फ़िर सब हवाई है
रहें जो दरमियां ..
जाम़नोशी की कवा़यद में
नहीं लगता पता उनको
ये अपना है या पराई है
ख़िरद का काम..
मुश्किल होता जाता है मोहब्ब़त में
नहीं आता पकड़ में जबकि,
अक्षर सिर्फ़ ढ़ाई है
जो दिल से हो गए ना़दिल
तो अब काहे फ़िकर होए
नहीं जानते जो दें आए गरीबों में
वहीं असली कमाई है
By Srishti Gupta
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