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आदमी
By Neeraj Tak
तू आदमी है,
हर दास्तां कि बस यही शुरुआत है,
तू आदमी है,
ज़िम्मेदारी हि तेरी बिसात है ।।
एरे क्यों रो रहा है तू,
एक चींटी के मरने का तुझ पर पाप है..
बचपना, शरारत, सुकून, फुरसत,
इन्हे बचपन में छोड़ आना हि रिवाज़ है..
तू आदमी है,
तेरे जीवन में गुथी अपनों कि आस है ।।
तू सुन, तू बस ज़िंदगी भर सबकी सुन,
तेरी आवाज़ में भला कहां मिठास है..
एक ओहदे के बाज़ार में बिकना है तुझे,
तुझे क्यूं खुशियों कि तलाश है..
तू आदमी है,
बस ओहदे से हि तेरी पहचान है ।।
हलक तक आएं है कुछ जज़्बात,
उन्हें छिपाकर, हंसने कि कला भी तेरे पास है..
कुछ कहता क्यूं नहीं है तू ?
क्या बस ज़िम्मेदारी ही तेरा लिबास है ?
तू आदमी है,
तेरी बेबसी हि तेरी कठोरता का राज़ है ।।
By Neeraj Tak