By Srishti Gupta
तू जो बात करें अख़बारों की
टूटी पड़ी गलियारो की ।
खामोशी की चादर में लिपटी
जुल्मों- सितमो में सनी
उन खूनी चार दीवारों की
आंगन में जिसकी गूंज उठे,
कोई डरे इतना ,न सो ही सके ।
चीखें जब जब वो शोर करे
जब घेरे चुप्पी तो , कोई गौर करें
ये सोच के कोई यूं न बढ़े
चलो घर चले, , ये कोई और करे
ऐसे बढ़कर कितना आगे ,
आख़िर तुम जा पाओगे?
जहां आज खड़ा कोई है ,
कल खुद अपने को पाओगे।
तुम भी एक दिन अख़बार की बस
एक सुर्खी बनकर रह जाओगे
पलभर को नज़रों से नवाजे जाओगे
फिर अगले दिन चाय की टपरी पर,
या कचरे में फेंके जाओगे
देखना एक दिन तुम भी
यूं ही.., अपना अन्त..
शुरुवात से लिखता पाओगे।
By Srishti Gupta
nice
👌