By Kishor Ramchandra Danake
आज की सुबह मैरी के लिए बोहोत ही मनोरम थी। क्योंकि आज पहली बार मैरी के घर में शोर था। श्रीकांत, नीलम, अक्षदा और प्रज्ञा की आवाजे घर में गूंज रही थी।
प्रज्ञा ने चिल्लाते हुए कहा, “वाव!!! क्या सुंदर कमरा है।“ यह बात उसने अब तीसरी बार चिल्लाकर कही थी।
ऊपर की मंजिल से श्रीकांत ने पुकारकर कहा, “नीलम, कैसा है किचन?”
नीलम ने चिल्लाकर कहा, “अच्छा है बोहोत।“ और धीमी आवाज में लंबी सांस छोड़कर कहा, “बड़ा भी है बोहोत।“
“जल्दी से एक चाय बना दो। फिर मैं स्कूल से एक चक्कर लगाके आऊंगा।“, श्रीकांत ने कहा।
“हां ठीक है बनाती हूं।“, नीलम ने ऊंची आवाज में कहा।
सुबह के ११ बजे थे। आज अक्षदा और प्रज्ञा स्कूल नहीं गए थे। श्रीकांत ने भी आज छुट्टी ले ली थी। हररोज की तरह आज भी मैरी अपने आंगन में अपना इंग्लिश बाइबल लेकर बैठी हुई थी। वह धीमी आवाजे जो वह सुना करती थी उन्हे उसने बुधवार के दिन से नही सुना था। जब भी घर में से कुछ आवाज होता था तो उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आती थीं। क्योंकि यह आवाजे उसे अच्छी और सुकूनभरी लग रही थी।
कुछ देर बाद दर्शन वहा आया। उसके साथ उसका चचेरा भाई अभिषेक भी था। वे दोनो भी आज स्कूल नहीं गए थे।
मैडम ने उनसे कहा, “आ गए तुम। वीडीओ शुरू करना है क्या?”
“आप तैयार हो मैडम?”, दर्शन ने कहा।
“हां। बिलकुल मैं तैयार हूं। जो सवाल दिए थे मैंने पढ़ लिए है। तो कहा रिकॉर्ड करना है वीडीओ?”, मैरी ने अपना बाइबल बंद करते हुए कहा।
“यही बाहर आंगन में शूट करते है।“, दर्शन ने कहा।
उसी वक्त घर में से अक्षदा और प्रज्ञा दोनो बाहर आई। अक्षदा दर्शन की कक्षा में तो प्रज्ञा अभिषेक की कक्षा में थी।
अक्षदा ने कहा, “दर्शन, वीडीओ शूट कर रहे हो क्या?”
“हां!”, दर्शन ने कहा। उसी दौरान अभिषेक और प्रज्ञा मिलकर कुर्सी और टेबल लाने गए। और सबकुछ तैयार करने में लग गए।
“अच्छा तो वीडीओ क्या है?”, अक्षदा ने पूछा।
“यह एक मूलाखत का वीडीओ है। ‘मैडम की मूलाखत’।“, दर्शन ने कहा।
वह बाते करते करते अपने मोबाइल को जिम्बल में सेट कर रहा था। और माइक दूसरे मोबाइल को लगा रहा था। ताकि दूसरे मोबाइल में भी आवाज रिकॉर्ड हो सके।
“अच्छी बात है फिर। कभी मेरी भी मूलाखत लेना।“, अक्षदा ने कहा। और हंसने लगी।
दर्शन ने कहा, “हां! जरूर। इस साल बोर्ड में नंबर लाना मैं तुम्हारी मूलाखत लूंगा। और टाइटल दूंगा ‘द स्ट्रगल ऑफ अक्षदा मैडम’।“ और हंसने लगा।
अक्षदा ने हंसते हुए कहा, “कुछ भी हा अब।“
“अरे मजाक कर रहा हूं।“, दर्शन ने कहा।
अभिषेक और प्रज्ञा ने एक छोटा टेबल लाया।
दर्शन ने यह देखकर कहा, “अरे टेबल की क्या जरूरत है?”
प्रज्ञा ने कहा, “अरे ये टेबल पर हम गुलदान रखेंगे। फिर पानी का ग्लास और खाली चाय के कप भी। थोड़ा प्रोफेशनल लगेगा।“ और दर्शन की तरफ देखकर अपनी जीभ बाहर निकलकर आंख मारी। सब एक पल के लिए प्रज्ञा की तरफ देखकर आश्चर्यचकित हों गए। और हंसने लगे।
“अरे हा सही है। जाओ जल्दी से लेकर आओ।“, दर्शन ने कहा।
उसी वक्त श्रीकांत भी बाहर आया।
“क्या चल रहा है बच्चों ?”, श्रीकांत ने कहा।
“जी पापा। दर्शन वीडीओ बनाता है। आज वो मैडम की मूलाखत लेने वाला है।“, अक्षदा ने कहा।
“अच्छा! अच्छा! ठीक है। चलने दो। मेरा थोड़ा काम है। गांव से होकर आता हूं।“, श्रीकांत ने कहा। और वह अपनी बाइक लेकर चला गया।
सब एकदम तैयार थे। प्रज्ञा ने टेबल पर सामान रख दिया था।मैरी एक कुर्सी पर बैठ गई और उस के सामने दूसरी कुर्सी पर दर्शन बैठ गया। अक्षदा और प्रज्ञा अभिषेक के पीछे खड़े थे जो मोबाइल का कैमरा हैंडल कर रहा था।
अभिषेक ने बोला, “तो अब शुरू करते है।“
परिचय देने के बाद दर्शन ने सवाल करना शुरू किया।
“तो मैडम बताइए की आपका बचपन कैसे गुजरा?”, दर्शन ने कहा।
मैडम ने कहना शुरू किया, “मैं जब दस साल की थी तब मैने अपने पिताजी और मां को खो दिया। मैं उसके बाद इसी शहर के एक अनाथ आश्रम में बड़ी हुई। आश्रम ने ही आगे मेरी स्कूल की जिम्मेदारी उठाई। मेरे पहले पहले दिन बोहोत ही दुखभरे थे। मुझे अपने पिताजी और मां की बोहोत याद आती थी। लेकिन वहा की एक सिस्टर मेरे साथ समय बिताती थी तो मुझे अच्छा लगता था। पता नही क्या हुआ लेकिन वह सिस्टर कुछ समस्याओं से गुजर रही थी। धीरे धीरे वह मुझ से दूर रहने लगी। फिर सुनाई दिया की वह दूसरी जगह शिफ्ट हो गई। और उस दिन वह भी मुझसे दूर हो गई। मुझे फिर से अकेला महसूस होने लगा। स्कूल में भी मेरे साथ कोई जादा नही रहता था। फिर ऐसे ही चलता रहा और मैंने अपनी मैट्रिक्स पूरी की। इतना सब चल रहा था लेकिन फिर भी मैट्रिक्स में मैने अच्छे मार्क्स लाए। बस ऐसा ही था मेरा बचपन।“
“बोहोत ही दुखभरा था लेकिन आप आगे बढ़ती रही यही बोहोत महत्वपूर्ण बात है। तो क्या मैडम आपके कॉलेज के दिनोंके बारे में और आपके एक टीचर बनने के सफर के बारे में कुछ बताएंगे?”, दर्शन ने कहा।
“मैने स्कॉलरशिप से अपना अंग्रेजी विषय में ग्रेजुएशन पूरा किया। फिर कॉलेज के दिनों भी एक टीचर थी जो मेरे साथ अच्छा समय बिताती थी। उस वक्त मुझे उस बचपन की सिस्टर की ही याद आ गई थी। काफी दिनों बाद मुझे थोड़ा अच्छा महसूस होने लगा था। लेकिन कुछ दिनों के बाद वह टीचर भी मुझ से दूर रहने लगीं। पता नही ऐसा क्या हो रहा था। वह बोहोत निराशा में रहती थी। फिर ऐसे ही सुनने में आया की वह कुछ पारिवारिक और मानसिक समस्याओं से झुंज रही है। कुछ दिनों के बाद उस टीचर का मेरे साथ पूरा संबंध टूट गया। कॉलेज में मेरे दोस्त थे। लेकिन फिर भी मैं खुदको अकेला ही महसूस करती थी। आखिर में मैंने अपनी परीक्षा में अच्छा स्कोर किया। कॉलेज खत्म होने के बाद मैं एक माध्यमिक स्कूल में अध्यापिका के रूप में जुड़ गई। तब मैं २६ साल की थी। फिर मैं तब से लेकर अब तक अंग्रेजी विषय पढ़ाती रही। आखरी बार मैं येवला के एक कॉन्वेंट स्कूल में प्रिंसिपल थी। फिर मैं रिटायर्ड हो गई और अपने घर फिर से लौट आई।“, मैरी ने कहा।
“आपका काफी लंबा सफर था और दुखभरा भी। क्या आप लोगों को कुछ सलाह देना चाहोगे मैडम?”, दर्शन ने कहा।
“बस यही की जिंदगी अकेले काटना बोहोत मुश्किल होता है। जो तुम्हारे साथ है उनके साथ अच्छा समय बिताओ और उन्हे कभी मत छोड़ना। और अपने जिंदगी में हमेशा आगे बढ़ते रहना।“, मैरी ने भावुक होकर कहा। अब उसकी आंखों में थोड़ा सा पानी भर गया था।
“आपसे हमे बोहोत प्रेरणा मिली मैडम और जिंदगी के कुछ सबक भी।“, दर्शन ने मैडम से कहा। और कैमरा की तरफ देखकर कहा, “तो बस वीडीओ को अपने करीबी लोगोंके साथ शेयर करो, लाइक करो और मिलते है अगले वीडीओ में।“
अभिषेक ने मोबाइल का कैमरा बंद किया। पीछे अक्षदा, प्रज्ञा और उनकी मां नीलम भी खड़ी थी। वह वीडीओ के बीच में ही उनके साथ आकर खड़ी हुई थी।
अक्षदा बस मैरी की ओर ही देख रही थी। उसका मन बोहोत सी शंकाओंसे भर गया था।
“हो गया वीडीओ पूरा?”, नीलम ने कहा।
“हां मम्मी हो गया।“, प्रज्ञा ने कहा।
दर्शन ने कहा, “थैंक यू मैडम। अब यूट्यूब पे डालने के बाद सबको लिंक सेंड कर दूंगा।“
“ठीक है दर्शन।“, मैरी ने कहा।
नीलम अब घर के अंदर चली गई। उसी वक्त श्रीकांत अपनी बाइक पर आ गया। उसके हाथ में एक थैली थी।
वह उनके पास आया। और उसने कहा, “अरे, हो गया वीडीओ पूरा?”
“हां पापा हो गया।“, प्रज्ञा ने कहा।
“हो गया अंकल।“, साथ में दर्शन ने भी कहा। “अच्छा तो हम चलते है।“
“अरे ये लो बर्फी तुम्हारे लिए।“, अपनी थैली से बर्फी का बक्सा निकालते हुए श्रीकांत ने कहा।
उसने उन्हे और मैडम को एक एक बर्फी दे दि। और बक्सा प्रज्ञा के हाथ में दे दिया।
“थैंक यू अंकल। अब हम चलते है।“, दर्शन ने कहा। और वह दोनो चले गए।
श्रीकांत, प्रज्ञा और अक्षदा बाते करते करते घर में चले गए। लेकिन मैरी वही कुर्सी पर बैठी रही। अपनी सोच में वह फिर एक बार गुम हो गई। लेकिन उसी वक्त वहा एक बूढ़ा आदमी अपने हाथ में अपनी लाठी पकड़े उसके सामने आकर खड़ा हुआ।
“मैरी ने अचानक से और लगबगी से कहा, “बैठो ना श्रावण चाचा। आओ आओ!!” श्रावण चाचा कुर्सी पर बैठ गए। उसी वक्त प्रज्ञा और अक्षदा वहा आई और उन्होंने श्रावण को एक बर्फी दि और वह दोनो हाथ में बक्सा लेकर बस्ती की ओर चल पड़े।
“तो कैसे हो श्रावण चाचा?”, मैरी ने शांति से कहा।
“अच्छा हूं। ईश्वर की दया से और तुम्हारे पिता की वजह से।“, श्रावण चाचा ने धीमी और थकी आवाज में कहा।
मैरी ने थोड़ा सा मुस्कुरा दिया। और कहा, “आज भी मुझे उनकी याद आती है। सच कहूं तो मैं कुछ जानती ही नही उनके बारे में और अपनी मां के बारे में। बस उनके धुंधले से चेहरे मेरे आंखों के सामने है।“
श्रावण चाचा ने कहा, “हम तीनो भाई और हमारी एक बहन और हमारा परिवार दूर गांव से यहां रहने आया था। हम यहां काम करने और अपना पेट भरने आए थे। आपके दादाजी ने हमे आसरा दिया था। हम यहां आपके खेतों में, जानवरोंका और घर का काम करते थे। तब बस्ती पर बस हमारे परिवार, तुम्हारे पिताजी, दादाजी और दादी रहते थे।“
मैरी बस श्रावण चाचा के तरफ ही देख रही थी। और उसके कान बस श्रावण चाचा की बातोंपर ही थे। उसने यह बाते पहले भी सुनी थीं। लेकिन वह अपने अतीत के बारे में सुनने के लिए तरस से भर जाती थी।
श्रावण चाचा ने अपनी बात आगे बढ़ाना शुरू किया, “तो वो दिन था जब तुम्हारी मां ने पहली बार इस बस्ती पर अपना कदम रखा था। वह एक संघटन के साथ शहर से यहां येशु का प्रचार करते हुए आई थी। तुम्हारे पिताजी को उन लोगोंकी बाते सुनना अच्छा लगता था और हमे भी। और क्यों न लगे? उनकी बातों में प्यार के और आशा के शब्द जो थे। तब से हम सब येशु का अनुसरण करने लगे थे। एक दिन संघटन के लोगोंके सामने तुम्हारे दादाजी ने और पिताजी ने तुम्हारी मां के साथ शादी का प्रस्ताव रखा। तुम्हारी मां भी अनाथ थी। फिर उनकी शादी शहर के चर्च में हुई जो उसी संघटन का था और तुम्हारी मां इस घर में आई। उसके बाद हुआ तुम्हारा जन्म। तुम्हारे जन्म से सबको बोहोत खुशी हुई थी। एक दिन तुम्हारे दादाजी बीमार हो गए। इतने जादा की कोई भी दवा और कोई भी वैद्य उन्हे बचा नही पाया। कुछ दिनों बाद तुम्हारी दादी भी बोहोत बीमार रहने लगी थी। तुम्हारे दादाजी की तरह ही। मेरे भाई दगड़ू की पत्नी इठाबाई ही उनका खयाल रखती थी। उनका सब करती थी। तुम्हारी मां भी तुम्हारे दादी का बोहोत खयाल रखती थी। लेकिन उनकी और भी जादा खराब होती तबियत देखकर वह कभी कभी बोहोत रोती थी। फिर वह दिन आया जब आखिरकार उस बीमारी में तुम्हारी दादी गुजर गई। तब तुम लगभग दस साल की ही थी।“
मैरी ने कहा, “हां! मुझे थोड़ा थोड़ा सा याद है।“
श्रावण ने आगे कहा, “तुम्हारे पिताजी ने खुदको संभाल लिया लेकिन तुम्हारी मां को उस सदमे से बाहर आने में बोहोत वक्त लगा।“
मैरी मन ही मन सब सोच रही थी।
श्रावण ने आगे कहा, “क्योंकि सुना था की उन्होंने अपनी मां को भी ऐसे ही बचपन में अपने आंखों के सामने में खोया था। और हम सबको तुम्हारे मां की बोहोत चिंता होती थी।“
मैरी की आंखे आसुओंसे भर गए थी। लेकिन वह उन्हे बस बहने दे रही थी।
अपनी बात फिर से आगे बढ़ाते हुए श्रावण ने कहा, “जब तुम एक दिन स्कूल में थी। अचानक से घर के पीछे तुम्हारी मां” और वह रुक गया और उसने फिर से आगे कहा, “वह अपघात कोई नही भूल सकता। और उन दिनों सबकुछ बदल गया। दिन गुजरे। लेकिन तुम्हारे पिताजी उस सदमे से जल्दी उभर नही पाए। उनका सारा ध्यान बस तुम्हारे ऊपर था। तुम्हारे पिताजी का कहना था की उन्हे तुम्हारे मां की आवाजे सुनाई दे रही थी। जैसे वह उनको उनके पास बुला रही हो। वे बोहोत बैचेन रहने लगे थे। एक दिन उन्होंने फैसला किया की कुछ जमीन हमारे नाम कर दे। फिर हमने पूछा की हम तो गरीब आपके नौकर है। हमे क्यों? उन्होंने कहा कि यह सलाह उन्हे तुम्हारी मां ने ही दी है। उसकी आवाज ने यह कहा है की यह जमीन हमारे नाम कर दे। सच में तुम्हारी मां हमारी बोहोत परवा करता थी।“
मैरी यह बाते सुनकर चौंक गई। उसे उसी वक्त उस व्यक्ति की बाते याद आई जो हाथ की रेखाएं देखता था और आत्माओं के बारे में बाते कर रहा था।
श्रावण ने कहा, “पता है तुम्हारे पिताजी ने हमे यह जमीन मुफ्त में नही दी। उन्होंने हम सबसे बस १ आना लिया। और कहा की कोई नही कह सकेगा की तुमने इसकी कीमत नही चुकाई।“
अब श्रावण चाचा के भी आंख में आंसू आने लगे थे। उसने अपने हाथ में रखे ४ पुराने सिक्के मैरी को दिए।
उन्होंने आगे रोते हुए कहा, “उनके गुजर जाने के बाद मैने इन्हे अपने पास रख लिया था। यह तुम्हारे हक के है और मैं इन्हे तुम्हे देना चाहता था। बस मुझे यही कहना है। देखो अब मेरी भी जिंदगी जादा नही बची है। मैं चाहता था कि मैं अपनी आंखे बंद करने से पहले तुम्हे यह सब बाते बताऊं। तुम्हारे पिताजी और मां बोहोत अच्छे थे। हमारे साथ भी और सबके साथ भी। उन्होंने हमारा और हमारे पिढियोंका भला किया है।“
“हां, वह बोहोत अच्छे थे। मैं उन्हें आज भी बोहोत याद करती हूं।“, मैरी ने कहा।
“वह अभी उस सुख लोक में होगे। मेरा बड़ा भाई शंकर, उसकी पत्नी और मेरी पत्नी कमला भी उनके साथ ही होंगे।“, श्रावण चाचा ने कहा। और शांत हो गए।
थोड़ी सी शांति के बाद श्रावण ने कुर्सी से धीरे धीरे अपनी लाठी पकड़कर उठते हुए कहा, “अच्छा तो अब मैं चलता हूं।“
“हां जरूर। आपका बोहोत बोहोत शुक्रिया श्रावण चाचा।“, मैरी ने भी अपनी कुर्सी से उठते हुए कहा।
फिर श्रावण चाचा बस्ती की ओर चल पड़े। मैरी अपने कुर्सी पर फिर से बैठ गई। और उन्ही बातोंको याद कर रही थी जो श्रावण चाचा ने उससे कही थी। और उसके अतीत की धुंधली सी यादों को भी याद करने लगी।
शाम हुई। ऊपर अक्षदा और प्रज्ञा अपनी अपनी किताबे लेकर बैठी हुई थी।
८ नवंबर २०१४ अपनी डायरी पर तारीख लिखने के बाद प्रज्ञा ने कहा, “अरे क्या सोच रही हो रानी?”
“पनू! तूने वो मूलाखत पूरी सुनी ना?”, अक्षदा ने कहा।
“हां, तो उसका क्या? बोहोत ही संघर्ष से भरी थी।“, प्रज्ञा ने कहा।
“हां, संघर्ष से तो भरी थी। लेकिन और भी कुछ था उसमे।“, अक्षदा ने कहा।
“और भी कुछ का मतलब क्या है तुम्हारा?”, प्रज्ञा ने हैरानीयत से पूछा।
“देखो जब मैं यहां पापा के साथ आई तो मैंने कुछ महसूस किया। एक बुरा साया।“, अक्षदा ने कहा।
“क्या? एक बुरा साया?”, प्रज्ञा ने चौंकते हुए कहा।
“हां! लेकिन उसे मैं जादा महसूस नहीं कर पाई। और मूलाखत में भी मैडम ने अपने बारे में बताया। गौर करने की बात है कि, मैडम जिनके भी साथ होती थी उनके साथ कुछ ना कुछ समस्या ही होती थी। मेरे खयाल से इसलिए सब लोग मैडम से दूर रहते थे शायद। “, अक्षदा ने कहा।
“ओहss अच्छा! बेचारी मैडम। तो तुमने जो महसूस किया उसके बारे में उस वक्त पापा को क्यों नहीं बताया?”, प्रज्ञा ने कहा।
अक्षदा ने लंबी सांस छोड़ी। और कहा, “शायद इसलिए की मैडम खुद इस साए के बारे में नहीं जानती होगी। ऐसा मुझे लगता है। मुझे लगता है की उन्हे हमारी जरूरत होगी। वैसे भी यह जगह कितनी अच्छी है। सुकून भरी। अब बस देखते है आगे क्या होता है?”
“हां। देखते है। मुझे भी सुपरनैचुरल एक्सपीरियंस मिलेगा।“, प्रज्ञा ने उत्साह से कहा।
और वे दोनो अपनी अपनी पढ़ाई में मग्न हो गई।
By Kishor Ramchandra Danake
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