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1. कौन हूँ मैं,
By Anushka Tyagi
जब चोट लगी सर पर कभी,
और चेतना हो गायब कहीं,
कोई बचा हो मृत्यु से कहीं,
और लगती हो हर बात नई,
बस करता है वह प्रश्न यही,
कौन हूँ मैं?
जब हाथ को तेरे बंधे हुए,
और कंठ भी रुंधे हुए,
पग भी ना हो सधे हुए,
और बोझ हों ऊपर लदे हुए,
बस करता है तू प्रश्न यही,
कि आखिर कौन हूँ मैं?
जब भटका भूल-भुलैया में,
और अटका हो पुरवैया में,
ना ध्यान लगा रमैया में,
जो लगा हो ता-था-थैया में,
बस करता है वो प्रश्न यही
कि कौन हूं मैं?
जो चाहा हो वो ना मिला,
कुछ खोने का जब हो गिला,
अगर अंतर प्यासा ना हिला,
और व्यथित हृदय रहा सिला,
बस करता है फिर प्रश्न यही,
कि आखिर कौन हूँ मैं?
जब बेसुध स्वप्नों को बोया हो,
और मनोबल किसी ने डुबोया हो,
जब अंतस काँटो से धोया हो,
और हिचकी भरकर रोया हो,
तब करता है वो प्रश्न यही,
कि कौन हूँ मैं?
तू मेरी कलम का सहारा है,
पर अपनी पहचान से हारा है,
तू सूनेपन का उजियारा है,
तू स्वयं में ही जग सारा है,
स्वयं को पहचानना जरूरी है,
कि कौन हूँ मैं?
तू प्रेम का एक आकर्षण है,
तू ही शास्त्र और दर्शन है,
तुझ से पैदा घोर-गर्जन है,
रे! तू प्राणी जीवन-सर्जन है,
फिर भी करता है प्रश्न यही,
कि कौन हूँ मैं?
तू स्वयं ही स्वाभिमान है,
तूने किया हलाहल पान है,
सच्चाई का पैगाम है,
फिर भी तू मधुमय गान है,
फिर भी करता है प्रश्न यही,
कि कौन हूँ मैं?
नैनों से बरसता सावन है,
तू भावनाओं सा पावन है, समरसता एक संभावन है,
रंगीन बहुत मन-भावन है,
फिर भी करता है प्रश्न यही
कि कौन हूँ मैं?
कहीं तालाबों सा ठहरा है,
कहीं नित्य-निरंतर बह रहा है,
उथली नदियों में भँवरा है,
निष्ठुर सागर सा गहरा है,
फिर भी करता है प्रश्न यही,
कि कौन हूँ मैं?
ब्रह्मांड में फैली ध्वनि-धारा, शून्यता से उत्पन्न विश्व सारा,
गांडीव का भी टंकारा,
तू ही जड़-चेतन स्वीकारा,
फिर भी करता है प्रश्न यही,
कि कौन हूँ मैं?
हाँ
मजबूर होगा तू,पर तेरा वक्त नहीं, बस इतना ही,कि चंगुल से तू मुक्त नहीं
जितना कोमल है बन सख्त वहीं, अन्यथा खालिस पानी है फिर रक्त नहीं
इसलिये स्वंय को पहचाना होगा कि कौन हूँ मैं?
तू प्रचंड गति लय-ताल में,
तू शूल-त्रिशूल और भाल में,
डमरू-घुंगरू हर हाल में,
रे! तू तांडव है महाकाल में,
फिर भी कहता है कि कौन हूँ मैं?
जिस कण से कृष्ण और राम
हैं,
अल्लाह हैं और भगवान हैं,
नानक, रहीम, रहमान हैं,
रे! उस कण का तू निर्माण है,
स्वयं को जानना जरूरी है
कि कौन हूं मैं?
योगियों के योग में,
एकांत के सहयोग में,
लक्ष्य पर हठयोग में,
और दो मूक स्वरों के संयोग में,
एक महा सिंह नाद, फिर भी
मौन हूँ मैं?
जी! हाँ, ज्वलंत मौन हूँ मैं?
By Anushka Tyagi